Friday, August 31, 2012

खुदा भी रत्ती भर जिंदगी में, अहशान देता है....!!!!


वो मुहब्बत भी मुझे, बे-पनाह देता है....
देता है जब दर्द, तो बे-परवाह देता है.....

मर्ज़ देकर मेरा हकीम मुझे,,,
हकीम के पास जाने की सलाह देता है....

वो नफरत भी करता है तो शादगी से,,,
हमारे जुनून को एक इल्जाम देता है....

कोई जाके कह दे मेरे हम-नवा से,,,,
वो जब भी देता है, नया फरमान देता है....

मुफ्लिशी में खुद की, फ़क़त आरज़ू नहीं,,,,
अब खुदा भी रत्ती भर जिंदगी में, अहशान देता है....

ये आदत है मेरी, या तफरीह का मलाल,,,,
जो भी हो 'कसक' अब मुस्कान देता है.......


अमित बृज किशोर खरे
"कसक"

Wednesday, August 29, 2012

अब वक़्त है "कसक" के चैन से सो जाऊ....!!!

 
यूँ पल-पल मरने से अच्छा है, एक बार मर जाऊ,,
आंशु बनके आँखों से, एक बार बिखर जाऊ...

अब इस मुकम्मिल जहाँ में, मेरे लिए कुछ न बचा,,,
सोचता हूँ अब सागर की गहराई में उतर जाऊ...

हर रास्ता जा रहा है, बस उसी की तरफ,,,
अब जाऊ भी तो कैसे और कहाँ जाऊ...??

उससे तो सुना दिया फरमान ताबीर-ये-ख्याब का,,,
अब ठहरूँ, या ख्याब की तरहा बिखर जाऊ...??

ये आखिरी कील थी मेरे मुहब्बत-ये-ताबूत में,,,
अब वक़्त है "कसक" के चैन से सो जाऊ...


अमित बृज किशोर खरे
"कसक"

Tuesday, August 28, 2012

एक कहानी ख़तम होने को है....!!!!



और एक कहानी ख़तम होने को है,
फिर से वो काली रात होने को है..

बड़ी कसमकस थी, बड़ी आरजू थी,
थे बोल उसके मेरी बान्शुरी थी..
यूँ हसने का हमको मिला ये सिला है,
अब हस्ते है खुद पे, न तुझसे गिला है..

तुमको पता है, और मुझको यकीं है,
के मेरा आफ़ताब अब खोने को है....

इस नींद की भी हमसे बड़ी बेरुखी है,
न जाने इन आँखों में ये कहाँ पे रुकी है..
इस नींद को तलाशने में, सारे आंशु गुज़र गए,,
और इन सूखी आँखों मै अब अँधेरे पसर गए...

लिखा भी नहीं जाता दर्द इससे आगे "कसक"
सायद ये कलम भी अब थक के रोने को है....


अमित बृज किशोर खरे
"कसक"


Friday, July 6, 2012

जाने के लिए मत आना...!!!



अब अगर आना, तो रुकने के वास्ते आना,,,
जाने के लिए मत आना...!!!

भीनी-भीनी सी खुशबू है तेरे अंजुमन में,,
अब अगर आना, तो बारिश में भिगोने के लिए आना,,,
आंशुओं की बूंदें लिए मत आना....!!!

कुछ चंद लम्हों और मुलाकातों की ये जिंदगी नहीं,,
अब अगर आना, तो घर को बनाने के लिए आना,,,
मेहमान बनके मत आना...!!!

हम यूँ ही हिज्र-ऐ-बेरुखी में अब न रुकेंगें,,
अब अगर आना, तो सागर के ठहराव सा आना,,,
नहीं के बहाव से मत आना...!!!

मंजिलों की उम्मीद तो हम कब की छोड़ चुके, बस करवा ही बाकि है,,
अब अगर आना, तो साथ चलने के लिए आना,,,
रास्ता दिखाने के लिए मत आना...!!!

अब 'कसक' ने कमजोर धागों को ढीला छोड़ रखा है,
अब अगर आना, तो रिश्तो को बांधने के लिए आना,,,
उम्मीद तोड़ने के लिए मत आना...!!!

अमित बृज किशोर खरे
'कसक'


ताकी सो सकूँ चैन से कबर में......!!!!



जिंदगी और प्यार,
ये वो दो रिश्ते है....
जिनमे अजीब सी 'कसक' है..
और जो है हर वक़्त अधर मे...!!!

या तो प्यार मिट जाये,
तो रह सकूँ चैन से, तन्हाई के भंवर में...
या फिर रुक जाये जिंदगी,
ताकी सो सकूँ चैन से कबर में...

अमित बृज किशोर खरे
'कसक'

Thursday, June 21, 2012

My Pen......!!!!!!



आज एक बार फिर उससे मुलाकात की,,
कुछ दिनों से कुछ दूर सी थी वो..
आज पता नहीं क्यों,,??
उसी पास बिठाने का मन किया....

बैसे तो वो मेरे पास ही थी,
पास शायद हमने ही,
चांदनी की चाहत में,
दिये की रोशनी को बुझा दिया था...

आज इस काली रात ने,
उस हमसफ़र की याद दिला दी...

वो जो हर वक़्त मेरे साथ चलती थी,
मेरी ख़ुशी में खुश थी,
तो मेरे आंशुओं के साथ पिघलती थी...

जो करती थी मुझसे बातें,
बिना किसी जुबान के,,
और जो थम लेती थी मुझे,
बिना किसी अहसान के....

जिसने हर वक़्त दिया मेरा साथ,
मेरी हर एक खुसी में,
मेरे हर एक गम में.....
वो प्यार की 'कसक' में थी,
और थी दर्द के मरहम में.....

वो एक, और बस एक साथी मेरी....
"मेरी कलम"
My Pen........



Thursday, March 29, 2012

तुम्हारी बेरुखी से ज्यादा फर्क नहीं पड़ा... कुछ नहीं बदला...!!!!



तुम्हारी बेरुखी से ज्यादा फर्क नहीं पड़ा..
कुछ नहीं बदला...

सांसें उसी तरहा चलती हैं,,
बैसे ही जैसे पहले...
दिल धड़क रहा है अभी भी,
बैसे ही जैसे पहले...
आँखें भी झपकती हैं अभी तक,
बैसे ही जैसे पहले...

बस अब भरोसा नहीं,,,
सांसो पे, धड़कन पे, और आँखों पे,,,
पता नहीं कब इनका,
सफ़र रुक जाये...

भरोसा उतर गया,,
और कुछ भी नहीं बदला....

हवाएं अभी भी चलती हैं,
पहले की तरहा...
फिजायें अब भी आती हैं,
पहले ही तरहा...
बहारें अब भी आती है,
पहले की तरहा...

बस अब भरोसा नहीं,,,
हवाएं अब दूसरी हैं...
फिजायें अब दोसरीं हैं...
बहारें अब दूसरीं हैं...

ये मेरे लिए नहीं...
बस मेरे लिए नहीं...
मौसम अब बदल गया,,,
और कुछ भी नहीं बदला...

सूरज अब भी निकलता है,
पर तपन देता है...
साँझ अब भी होती है,
पर अब चुभन देती है...
रात अब भी आती है,
पर अब डर देती है...

बस और कुछ भी नहीं आता,
सिवाए तेरी यादों के..
और कुछ नहीं बदला,
पहले बंद आँखों में सपने थे,
पर अब नींद भी नहीं...

बस और कुछ भी नहीं बदला...
तुम्हारी बेरुखी से ज्यादा फर्क नहीं पड़ा..
कुछ नहीं बदला...
बस और कुछ भी नहीं बदला...

अमित बृज किशोर खरे
"कसक"

Tuesday, March 27, 2012

फिर भी है कुछ कमी है...!!!


सब कुछ तो है मेरे पास,
पर कुछ भी नहीं..
उम्मीद से ज्यादा,
मुझे मिल रहा है,
फिर भी है कुछ कमी है...

कुछ खाली खाली सी,
जिंदगी लग रही है..
लग रहा है,
कुछ सूना सूना सा..

खुशबू चरों तरफ है,
पर लग रहा है,
कुछ बुझा बुझा सा...

शायद कुछ कमी है,
आँखों मै अभी नमी है,
शूखने को जा रहीं थी...

पर जल उठीं अधर मै...
खो गई सज़र मै...

प्यासी है मेरी ज़मीं,
और प्यासा हु मैं..
जल रहा हूँ हर पल,
पर बुझा बुझा सा हु मैं...

दिल धड़क रहा है अभी भी,
मध्यम मध्यम,
शायद कुछ ही पलों मै,
रखने वाला है सफ़र...

शायद कुछ ही पलों मै,
'कसक' भी रुक जाये..
और कसक की शाशें भी,
शायद रुक जाये...

अमित बृज किशोर खरे
"कसक"

Monday, March 26, 2012

अब तन्हाई में और मुस्कुराया भी नहीं जाता...!!!



अब तन्हाई में और मुस्कुराया भी नहीं जाता..!
वो संग-दिल सनम अब भुलाया भी नहीं जाता..!!

दर्द भी येसा है की बयां नहीं होता,
ये दर्द-ए-दिल किसी को सुनाया भी नहीं जाता..!

सोचता हूँ जाके सारी शिकायतें कर दूँ उससे,
पर उन प्यारी सी दो आँखों को रुलाया भी नहीं जाता..!

अजीब सा डर बस चूका हैं उजालों का ज़हन में,
और इस कम्बखत दिल को सुलाया भी नहीं जाता..!

चुन्ने को चुन लूँ दो उलझनें हैं मेरे दरमियाँ,
एक जिंदगी रुक गई, और एक मौत को बुलाया नहीं जाता..!

क्यों रास्तों में बीरानियाँ सी छाई हैं,
क्यों ये सफ़र अब गुज़ारा भी नहीं जाता..!

कह के गए थे वो के लौटेंगें चंद लम्हों में,
क्यों मुद्दतों के बाद भी मेरी कस्ती को किनारा भी नहीं आता..!

ये कैसी बेबसी है मुहब्बत-ए-हिज्र मै 'कसक'
दूर भी हैं मुझसे और उनको पुकारा भी नहीं जाता..!

अब तनहाई में और मुस्कुराया भी नहीं जाता..!
वो संग-दिल सनम अब भुलाया भी नहीं जाता..!!

अमित बृज किशोर खरे
"कसक"

Saturday, March 24, 2012

तू जहाँ से भी गुज़रे वहां रोशनी हो..!!!


तू जहाँ से भी गुज़रे वहां रोशनी हो..!
तेरी राहों में बस ख़ुशी ही ख़ुशी हो..!!

तेरी पलकों पे हर दम सितारें सजे हो,
तेरी आँखों मै एक चमक दिल-नशीं हो..!

चाँद जलता रहे बस तुझे देख कर,
चांदनी एस कदर तेरे दिल मै बसी हो..!

मैं रहूँ न रहूँ इसका कुछ गम नहीं,
ना रहूँ गर तो दिल में तेरे कुछ तो कमी हो..!!

तू जहाँ से भी गुज़रे वहां रोशनी हो..!
तेरी राहों में बस ख़ुशी ही ख़ुशी हो..!!

अमित बृज किशोर खरे
"कसक"

आज क्यों येसा लगा कि कुछ खोने जा रहा हूँ..!!!




आज क्यों येसा लगा कि कुछ खोने जा रहा हूँ..!
अपने आप को खुद अश्कों मैं डुबोने जा रहा हूँ..!!

क्यों औरों कि तरहा मैं करता नहीं हूँ बातें,
क्यों आज अपने स्वरों को टटोने जा रहा हूँ..!

क्यों उठ रहा है दिल मे तबस्सुम सा अजाब,
क्यों मैं खुद के ख्यालों को संजोने जा रहा हूँ..!

"क्यों नहीं हैं", "क्यों नहीं हैं" कुछ चाँद ख़यालात हैं,
क्यों इन सवालातों मैं खुद को दवाये जा रहा हूँ..!

मुझे नहीं पता, क्या कोई बताएगा मुझे,
क्यूँ मैं इस कलम को चलाये जा रहा हूँ..!

इस कश-म-कश में शायद मर रहा हूँ मैं हर पल,
मर गया था "कसक" पहले ही, अब में मौत को टाले जा रहा हूँ..!

आज क्यों येसा लगा कि कुछ खोने जा रहा हूँ..!
अपने आप को खुद अश्कों मैं डुबोने जा रहा हूँ..!!

अमित बृज किशोर खरे
"कसक"

Saturday, March 17, 2012

मुझे मासूम सी पागल लड़की पे तरस आता है..!!



मेरी आँखों के समुन्दर में जलन कैसी है..!
आज फिर दिल को तड़पने की लगन कैसी है..!!

अब किसी चाहत पे चरागों की कतारें भी नहीं,
अब तेरे शहर की गलियों में घुटन कैसी है..!

बरफ के रूप में ढल जायेंगे सारे रिश्ते,
मुझसे पूछो मुहब्बत की अगन कैसी है..!

में तेरे प्यार की खुवाहिश को न मरने दूंगा,
मौसम-ऐ-हिजर के लहजे में थकन कैसी है..!

रहगुज़रों में जो बनती रही काँटों की रिदा,
उसकी मजबूर सी आँखों में किरन कैसी है..!

मुझे मासूम सी पागल लड़की पे तरस आता है,
उसे देखो तो, मुहब्बत में मगन कैसी है..!

मेरी आँखों के समुन्दर में जलन कैसी है..!
आज फिर दिल को तड़पने की लगन कैसी है..!!

अमित बृज किशोर खरे
"कसक"

Thursday, March 8, 2012

धूप के किनारे परछाइयाँ तो होती हैं..!!!!


प्यार मैं थोड़ी बहुत लड़ाइयाँ तो होती हैं..!
जैसे धूप के किनारे परछाइयाँ तो होती हैं..!!

क्या डरना है खुद से या किसी और से,
मुहब्बत मै थोड़ी रुश्बाइयाँ तो होती हैं..!!

यूँ ही नहीं बनता सपनो का महल,
प्यार मै थोड़ी सी प्यारी बेमानियाँ तो होती हैं..!!

कभी शरारत भरा गुस्सा, तो कभी मीठा सा प्यार,
हस्ते-हस्ते दिल की करिश्तानियाँ तो होतीं हैं..!!

हम तो साँस भी लेते हैं, तो उनकी खातिर,
इस तरहा हमारे दिल पे मेहरवानियाँ तो होती हैं..!!

वो प्यार ही क्या "कसक" जिसमे पागलपन न हो,
उनके होने पे जशन, और अकेले मै विरानियाँ तो होती हैं..!!

अमित बृज किशोर खरे
"कसक"

Thursday, March 1, 2012

मैं जिंदा हूँ अब तक के वो मुझे मरने नहीं देता..!!


जाने क्यों वो साँसों की डोर टूटने नहीं देता,
बस दो कदम और चलने का वास्ता देकर मुझे रुकने नहीं देता..!

बात कहता है वो मुझसे हस-हस कर जी लेने की,
अजीब शख्स है मुझको चैन से रोने नहीं देता..!

आज हौसला देता है मुझे चाँद सितारों को छू लेने का,
वो प्यारा सा चेहरा मुझे टूटकर बिखरने नहीं देता..!

शायद जानता है वो भी इन आँखों में आंसुओ का सैलाब है,
जाने क्यों फिर भी वो इन आंसुओ को गिरने नहीं देता..!

मुझसे कहता है, "की हमें चाहता है वो हद से ज्यादा",
मैं जिंदा हूँ अब तक के वो मुझे मरने नहीं देता..!

Sunday, February 26, 2012

आज तेरी याद आई, तो सोचा एक ग़ज़ल लिख दूँ..!!



आज तेरी याद आई, तो सोचा एक ग़ज़ल लिख दूँ..!
बढ़ने लगी तन्हाई, तो सोचा एक ग़ज़ल लिख दूँ..!!

जलते हुये दिलों को देखा जो पास जाके,
खुद से हुई लड़ाई, तो सोचा एक ग़ज़ल लिख दूँ..!!

लड़खड़ाते से गिर रहे थे, जब आये आँखों के मैखाने से,
शाकी से हुई सगाई, तो सोचा एक ग़ज़ल लिख दूँ..!!

उल्टा चल रहा है, दुनिया में मुहब्बत का शिलशिला,
पानी ने आग लगाई, तो सोचा एक ग़ज़ल लिख दूँ..!!

यूँ बुझते-बुझते बुझ गया, "कसक" तेरा दिया,
अपनों ने लौ बुझाई, तो सोचा एक ग़ज़ल लिख दूँ..!

आज तेरी याद आई, तो सोचा एक ग़ज़ल लिख दूँ..!
बढ़ने लगी तन्हाई, तो सोचा एक ग़ज़ल लिख दूँ..!!

अमित बृज किशोर खरे
"कसक

Friday, February 24, 2012

तू सोचती है हम, बुरी नज़र से देखते है..!!


नज़र बचाकर, नज़र से देखते हैं,
हम तुम्हे बड़े डर से देखते हैं..!
मैंने तेरे चहरे की किताब को पढ़ा है,
तू सोचती है हम, बुरी नज़र से देखते है..!!

क्यों सोचती हो मेरे बारे मे येसा,
क्यों मुझे समझा नहीं..!
क्या चाहा तुने मुझसे,
मैं भी जिसे समझा नहीं..

कुछ सुनाओ तुम बता कर,
जा रहे हो क्यों सता कर..!
आज भी नज़र झुका कर,
तुम्हे नज़र से देखते है..!!

क्यों तुम रुठते हो हमसे,
हम पूछते हैं तुमसे..!
तुम जानो या न जानो,
हम हैं जहा मैं तुमसे..!!

सबसे नज़र बचा कर,
खुद को यूँ जला कर..!
देवी तुम्हे बना कर,
दिल जिगर से पूजते है..!!

नज़र बचाकर, नज़र से देखते हैं,
हम तुम्हे बड़े डर से देखते हैं..!
मैंने तेरे चहरे की किताब को पढ़ा है,
तू सोचती है हम, बुरी नज़र से देखते है..!!

अमित बृज किशोर खरे
"कसक"

Tuesday, February 21, 2012

कब मेरा दीपक बुझ जाये..!!



ज्यों - ज्यों धुंधली रात की छाये,
त्यों - त्यों मेरा मन घबराए..!
पता नहीं कब हो अँधेरा,,
कब मेरा दीपक बुझ जाये..!!

पता नहीं ये कैसा पल है,
क्यों मेरा ये मन बोझल है..!
सारी दुनियां सो गई अब तो,,
क्यों मेरी आँखें खुल जायें..!!

ज्यों - ज्यों धुंधली रात की छाये,
त्यों - त्यों मेरा मन घबराए..!

आज अभी इस वक़्त यहीं थी,
खुशियों की कोई कमी नही थी..!
पर येसा क्या हुआ अभी ये,,
पास भी रहके दूर भी जाये..!!

ज्यों - ज्यों धुंधली रात की छाये,
त्यों - त्यों मेरा मन घबराए..!
पता नहीं कब हो अँधेरा,,
कब मेरा दीपक बुझ जाये..!!

अमित बृज किशोर खरे
"कसक"

Sunday, February 19, 2012

जैसे तुम आ गये..!!


यूँ झलके मेरे आँसूं, जैसे तुम आ गये..!
आये भी नहीं और हमको रुला गये..!!

दस्तक हुयी, और दिल मे तरनुम फूटने लगे,
जब दरवाजा हिला तो लगा, जैसे तुम आ गये..!!

हवायों ने भी हमसे किया खूब मजाक,
यूँ हवा का झौंका आया, जैसे तुम आ गये..!!

रात को हमने गिन लिए थे बहुत से तारे,
यूँ निकला अब के चाँद, जैसे तुम आ गये..!!

वो तबस्सुम, वो प्यार, वो इकरार की बातें,
करने लगे आईने से तो, जैसे तुम आ गये..!!

रख दो कुछ और नाम बदल के मेरा "कसक",
यूँ लिया अपना नाम, जैसे तुम आ गये..!!

अमित बृज किशोर खरे
"कसक"

Wednesday, February 15, 2012

हम हर पल तेरे साथ है..!!!



कभी तो उठा के देखो,
कदम अपने अरमानों के..!
कभी तो सजा के देखो,
सपने अनचाहे महमानों के...!!

बंदिशों की जंजीरों का,
अहसास है बहुत प्यारा..!
पर बंदिशें हो वो प्यार की,
तो रूठ जाये जग सारा...!!

कभी तो ड़ोलो संग,
मस्ती में परवानों के...!!
कभी तो उठा के देखो,
कदम अपने अरमानों के..!!

सागर की वो उठती लहरें,
नाचती गाती मन की लहरें..!
सीधा साधा प्यार का नाता,
अपनों के संग गाती लहरें...!!

तुम लहरों की साथी बनकर,
डुबो साथ दीवानों के...!!
कभी तो उठा के देखो,
कदम अपने अरमानों के..!!

क्यों सुनते हो गैरों की,
क्यों चिंता है अनजानों की..!
तुम हो प्यारी आज़ाद परी,
उड़कर, मंजिल छूलो अरमानों की...!!

हम हर पल तेरे साथ है,
क्यों परवाह है बेगानों की...!!
कभी तो उठा के देखो,
कदम अपने अरमानों के..!!

अमित बृज किशोर खरे
"कसक"

Tuesday, February 14, 2012

इस कदर कश पे कश मैं लगता चला गया...!!!


नफ़रत मिली और प्यार मैं करता चला गया,,,
यूँ धुयें का कारवां बढ़ता चला गया...!

आँधियों में बह गयी है उस वक़्त की तस्वीर,
खोजने को उस दिशा में बढ़ता चला गया...!

कश-म-कश में, एक कश में भी दिखती है ज़िन्दगी,
इस कदर कश पे कश मैं लगाता चला गया...!

हर तरफ धुयाँ ही धुयाँ है देखता हूँ जहाँ,
ज़िन्दगी को इस धुयें से बुझाता चला गया...!

इस तरहा ढह गया था मेरा आशियाँ 'कसक',
सबके घरों में ठोकर लगाता चला गया...!

नफ़रत मिली और प्यार मैं करता चला गया,,,
यूँ धुयें का कारवां बढ़ता चला गया...!

अमित बृज किशोर खरे
"कसक"

क्या चल रहा है ये शिलशिला...???



क्या चल रहा है ये शिलशिला...???
शायद खुद भी तो नहीं मालूम...
मै सोचता हूँ हर पल कुछ याद नहीं आता,,,
क्या इसी को प्यार कहते है..???

शायद नहीं मालूम मुझको,,
और शायद मालूम भी नहीं उसको...
पर कुछ तो हम कर ही सकते है,,,
क्या कुछ भी नहीं कर सकते...???

ये सवाल कुछ अजीब सा नहीं लगता हमको,,,
येसा सवाल जो खुद से पूंछा जाये...
और शायद इस सवाल का जवाब भी नहीं मालूम...
और एसे सवाल का मशला भी,,,
कुछ हल-सा होता नज़र नहीं आ रहा...

शायद प्यार यही होता है,,,
एक हँसता है, एक रोता है...
पर कुछ समझ नहीं आता,,,
ये प्यार क्या होता है...???

उसने भी तो मेरे सारे ख़त जला दिए,,,
क्या मै येसा करूँ तो सही होगा...???

शायद तो सही होना चाहिए,,,
पर मेरा दिल गवाही नहीं देता...
के उसकी आखरी निशानियों को भी,,,
आग के हवाले कर दूँ...

पर मैं ख़त तो जला ही सकता हूँ,
और पता अपने पास रख लेता हूँ..
ताकि आगे मुलाकातों का शिलशिला,
शायद कभी बन जाये...

शायद मैं सही हूँ, शायद मैं गलत हूँ...
क्या सोचता हूँ मैं, शायद खुद भी तो नहीं मालूम...!!!

अमित बृज किशोर खरे
"कसक"

Saturday, February 11, 2012

वो जाते भी है छोड़ कर, और कहते भी है के तुम्हारी याद आएगी...!!!!!


वो जाते भी है छोड़ कर,
और कहते भी है के तुम्हारी याद आएगी,,

पल पल में दर्द का अहशाश बढ़ता भी है,
और अगले पल मे शायद जान निकल जाएगी..

बस कुछ वक़्त ही तो बाकि है,
जैसे ही शाम होगी, रोशनी चली जाएगी...

ना कभी रोका था, ना कभी रोकेगा "कसक",
बस यही कहते-कहते बदली गुज़र जाएगी...

बस शायद अब कुछ ना बचा उस सज़र की तपिश मे,
अब इस दिल की तपिश से आँखे बिखर जाएँगी...

अमित बृज किशोर खरे
"कसक"

Monday, February 6, 2012

शायद प्यार यही होता है.....!!!!


बहुत दिनों से मेरा दिल मुझसे एक सवाल,
पूछ रहा था,,,
के ये प्यार क्या होता है..???
और मेरे पास उस सवाल का कोई,,,
जवाव भी न था...

पर शायद अब,
ये एहसास हो चला है...
के प्यार क्या होता है...???

जिसे चाहो, उसके ऊपर,
सारी जिंदगानी लुटा दो...
उसकी एक हसी पे,
अपनी सारी निशानी लुटा दो...

प्यार तो सब कुछ देके,
किसी के गालों पे,
उभरते गड्ढों का नाम है....

प्यार तो नाम है,,,
उस शुबहा का,
जो उसके चहरे से,,
खिलती है....
और उस चांदनी का,,,
जो उसकी आँखों,,,
से झलकती है....

प्यार तो शायद,,,
उस इल्तजा का नाम है,,,
जो रहती है,,
हर रोज़ मेरे ख्यालों मै...
और नाम है,,,
उस ख्वाहिश का नाम है,,,
जो रहती है,,,
मेरे ज़हन मै....

प्यार तो शायद,,,
उस इल्तजा का नाम है,,,
जो रोज़ दिल से निकलती है....
और शायद उस तमन्ना का,,,
जो तुम्हे पाना चाहती है...

पर पाने का नाम प्यार नहीं...
प्यार तो किसी के लिए लुट जाने का नाम है...

शायद प्यार यही होता है.....
शायद प्यार यही होता है.....

अमित बृज किशोर खरे
"कसक"

Sunday, February 5, 2012

वो घोंशला जो मैंने एक परिंदे के लिए बनाया था…!!!!


वो घोंशला
जो मैंने एक परिंदे के लिए बनाया था…

बहुत प्यार से उसमे,,,
चंद शीन्कें ही तो लगा पाया था…
कुछ चंद मुलाकातों की,,,
चंद हरी पत्तिया ही तो सजा पाया था…

दो-तीन प्यार भरे कांटें भी थे,,
हमारे झगड़ों के…
और आशाओं का,,,
नया सुनेहरा आशमान ही लुटा पाया था…

अब जब परिंदे ही नहीं,,,

तो टूटे सपने देखू भी,,,
तो किसके लिए…???
तो घोंशले को संजो के रखु भी,,,
तो किसके लिए…???

कसक के घोशले मे,,,
'कसक' की कसक,,
अधूरी रह गई......

अमित बृज किशोर खरे
'कसक'

मैं हमेसा यहीं हूँ तुम्हारे लिए..!!!


आखिर मैं तुम्हें क्यों रोकूँ…?
क्यों कहूँ के तुम सब कुछ हो मेरे लिए…?

क्या रोकने से तुम रुक जाते…?
फिर से एक सवाल खड़ा हो गया ज़िंदगी में…

अगर रुकना होता….
तो मेरी आँखों में जो इंतज़ार है तुम्हारे लिए,
उसे देखकर रुक जाते…

मेरे होठों की खामोसी,
जो दर्द-ए-मोहब्बत कह रही है,,
उसे सुनकर रुक जाते…

मेरी बाँहों का खालीपन,
जो चीख - चीख कर तुम्हारे दिल पे दस्तक दे रहा है…
उस दस्तक पे ठहर जाते…

जब तुमने महसूस ही नहीं किया इन सब को…
तो मेरे दो शब्द "मत जाओ"
कहने से क्या होता…?

शायद कुछ नहीं…
क्योकि शायद इन सब में…
तुम्हारी ख़ुशी नहीं थी…

तभी तो जब तुम जा रहे थे 
इन सब ने तुम्हे रोकने,
की कोशिश तो बहुत की…

मगर 'कसक’ के दिल की,
कसक कुछ और थी…
वो जीत कर हारना नहीं चाहता था…

वो चाहता था, और चाहता है,
के तुम खुश रहो…

'कसक’ अब इसी मोड़ पर खड़ा है,
आँखों में वही इंतज़ार की बूँदें लिए,
होठों के बही ख़ामोशी लिए 
और बाँहों में खालीपन के साथ…

अगर कभी तुम इस मोड़ से गुजरो,
तो मैं हूँ यहाँ, तुम्हारा हाथ थामने के लिए…

मैं हमेसा यहीं हूँ तुम्हारे लिए.. 
मैं हमेसा यहीं हूँ तुम्हारे लिए.. 

अमित बृज किशोर खरे 
"कसक"

Saturday, January 28, 2012

ये कैसी कहानी है............!!!!!


ये कैसी कहानी है,
दिल में जलन, आँखों में पानी है.. !
नाराज़ है मुझसे खुदा,
या उनकी मेहरबानी है.. !!

क्यों हँसना पड़ता है,
बेरंग मुहब्बत में..!
क्यों खाली रहता है,
ये हाथ इबादत में..!!

क्यों चलता रहता हूँ.. !
बे-वक़्त रवानी में..!!

ये कैसी कहानी है...........

वो हमसे कहते है,
रुक जाओ, ठहर जाओ.. !
हम उनसे कहते हैं,
तुम और करीब आओ.. !!

बदला हुआ आलम है,
बदली सी निशानी है.. !
हम उनपे मरते हैं,
क्यों उनको हैरानी है.. !!

ये कैसी कहानी है............

सोचा था उन्हें हँस के,
बाँहों में उठा लूंगा.. !
सब खुशियां उन्हें देके,
हर दर्द चुरा लूंगा.. !!

ये दर्द ही अपना है,
और प्यार पराया है.. !
मिलना था, हमको मिला,
एक दर्द का साया है.. !!

ये कैसी कहानी है,
दिल में जलन, आँखों में पानी है.. !
नाराज़ है मुझसे खुदा,
या उनकी मेहरबानी है.. !!


अमित बृज किशोर खरे
"कसक"