क्या चल रहा है ये शिलशिला...???
शायद खुद भी तो नहीं मालूम...
मै सोचता हूँ हर पल कुछ याद नहीं आता,,,
क्या इसी को प्यार कहते है..???
शायद नहीं मालूम मुझको,,
और शायद मालूम भी नहीं उसको...
पर कुछ तो हम कर ही सकते है,,,
क्या कुछ भी नहीं कर सकते...???
ये सवाल कुछ अजीब सा नहीं लगता हमको,,,
येसा सवाल जो खुद से पूंछा जाये...
और शायद इस सवाल का जवाब भी नहीं मालूम...
और एसे सवाल का मशला भी,,,
कुछ हल-सा होता नज़र नहीं आ रहा...
शायद प्यार यही होता है,,,
एक हँसता है, एक रोता है...
पर कुछ समझ नहीं आता,,,
ये प्यार क्या होता है...???
उसने भी तो मेरे सारे ख़त जला दिए,,,
क्या मै येसा करूँ तो सही होगा...???
शायद तो सही होना चाहिए,,,
पर मेरा दिल गवाही नहीं देता...
के उसकी आखरी निशानियों को भी,,,
आग के हवाले कर दूँ...
पर मैं ख़त तो जला ही सकता हूँ,
और पता अपने पास रख लेता हूँ..
ताकि आगे मुलाकातों का शिलशिला,
शायद कभी बन जाये...
शायद मैं सही हूँ, शायद मैं गलत हूँ...
क्या सोचता हूँ मैं, शायद खुद भी तो नहीं मालूम...!!!
अमित बृज किशोर खरे
"कसक"
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