वो घोंशला जो मैंने एक परिंदे के लिए बनाया था…!!!!
वो घोंशला
जो मैंने एक परिंदे के लिए बनाया था…
बहुत प्यार से उसमे,,,
चंद शीन्कें ही तो लगा पाया था…
कुछ चंद मुलाकातों की,,,
चंद हरी पत्तिया ही तो सजा पाया था…
दो-तीन प्यार भरे कांटें भी थे,,
हमारे झगड़ों के…
और आशाओं का,,,
नया सुनेहरा आशमान ही लुटा पाया था…
अब जब परिंदे ही नहीं,,,
तो टूटे सपने देखू भी,,,
तो किसके लिए…???
तो घोंशले को संजो के रखु भी,,,
तो किसके लिए…???
कसक के घोशले मे,,,
'कसक' की कसक,,
अधूरी रह गई......
अमित बृज किशोर खरे
'कसक'
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