आज क्यों येसा लगा कि कुछ खोने जा रहा हूँ..!
अपने आप को खुद अश्कों मैं डुबोने जा रहा हूँ..!!
क्यों औरों कि तरहा मैं करता नहीं हूँ बातें,
क्यों आज अपने स्वरों को टटोने जा रहा हूँ..!
क्यों उठ रहा है दिल मे तबस्सुम सा अजाब,
क्यों मैं खुद के ख्यालों को संजोने जा रहा हूँ..!
"क्यों नहीं हैं", "क्यों नहीं हैं" कुछ चाँद ख़यालात हैं,
क्यों इन सवालातों मैं खुद को दवाये जा रहा हूँ..!
मुझे नहीं पता, क्या कोई बताएगा मुझे,
क्यूँ मैं इस कलम को चलाये जा रहा हूँ..!
इस कश-म-कश में शायद मर रहा हूँ मैं हर पल,
मर गया था "कसक" पहले ही, अब में मौत को टाले जा रहा हूँ..!
आज क्यों येसा लगा कि कुछ खोने जा रहा हूँ..!
अपने आप को खुद अश्कों मैं डुबोने जा रहा हूँ..!!
अमित बृज किशोर खरे
"कसक"
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