Tuesday, February 21, 2012

कब मेरा दीपक बुझ जाये..!!



ज्यों - ज्यों धुंधली रात की छाये,
त्यों - त्यों मेरा मन घबराए..!
पता नहीं कब हो अँधेरा,,
कब मेरा दीपक बुझ जाये..!!

पता नहीं ये कैसा पल है,
क्यों मेरा ये मन बोझल है..!
सारी दुनियां सो गई अब तो,,
क्यों मेरी आँखें खुल जायें..!!

ज्यों - ज्यों धुंधली रात की छाये,
त्यों - त्यों मेरा मन घबराए..!

आज अभी इस वक़्त यहीं थी,
खुशियों की कोई कमी नही थी..!
पर येसा क्या हुआ अभी ये,,
पास भी रहके दूर भी जाये..!!

ज्यों - ज्यों धुंधली रात की छाये,
त्यों - त्यों मेरा मन घबराए..!
पता नहीं कब हो अँधेरा,,
कब मेरा दीपक बुझ जाये..!!

अमित बृज किशोर खरे
"कसक"

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