Monday, April 22, 2013

मेरी कहानी पार्ट - 2 -- प्यार भरी मीठी सी चाय..


ट्रेन ललितपुर स्टेशन पहुची थी और एक चाय वाले के चिल्लाने पर मेरी हलकी सी नींद टूटी थी. थोड़ी ही देर बाद एक आदमी ब्रेक-फ़ास्ट, ब्रेक-फ़ास्ट कहते हुए सामने खड़ा होगया, और जैसे कह रहा हो, के उठ जाओ कुम्भकरण सुबहा सो गई. मैंने उसकी महनत को सराहा और ब्रेकफास्ट ले लिया, और फिर सो गया.

करीब 10 मिनट बाद फिर से बही चाय वाला आवाज़ लगाते हुए गुजरा. मैंने एक चाय ली और पीने लगा. वो चाय तो नहीं थी, शायद चाय का पानी था. या कहूँ के मुझे चाय की जगह, वो चाय वाली सुबहा ज्यादा पसंद थी. जिस सुबहा प्रिया अपने हाथों से मेरे लिए चाय बनती थी. बार बोलने पे के फीकी बनाना, वो मीठी ही बनती थी, बिलकुल अपने जैसी.

हर रोज़ बार बार सुबहा उसे जल्दी उठा देता था. और बार बार चाय बनाने को भी कहता था, वो छिड जाती थी, कभी तो बहुत जोरों से चिल्लाती थी. उसे सुबहा का सोना जो पसंद था. और मुझे चिढती हुए वो. कुछ अलग बात थी उसकी प्यार भरी मीठी चाय में.

खैर पिछली रात की ही तो बात लगती है, जब में स्टेशन आरहा था हैदराबाद के लिए ट्रेन पकड़ने के लिए, या कहूँ के जिंदगी की गाड़ी छोड़ने जा रहा था. या कहु के छूट रही थी, क्या हो रहा था, कुछ समझ में नहीं आरहा था.

प्रिया जो कल तक मेरी हुआ करती थी, आज प्रिया राजपूत हो गई थी, उसने शादी कर ली थी. उसने बताया था मुझे, के उसने शादी करली है, पर मुझे तो आज तक यकीन नहीं हो रहा है के उसने शादी कर ली है. अगर कर ली तो मैं अब उसकी जिंदगी का हिस्सा नहीं.

जब मैं उसकी जिन्दगी का कोई हिस्सा ही नहीं रहा तो फिर मुझे इतना गुनाहगार क्यों बना दिया गया. अभी तक समझ नहीं आया मुझे. वो शादी कर चुकी है तो अब मुझे क्या करना चाहिए..? क्या उसकी याद में पागल हो जाना चाहिए, पर नहीं हो सकता क्योकि उसी ने कहा था की अगर मैं न रहूँ तो गम न करना, दुनियां बहुत ख़ूबसूरत है उसे प्यार करना, तो पागल तो हो नहीं सकता.

येसा करता हूँ एक अँधेरे से कमरे में अपने आप को बंद कर लेता हूँ, और तनहा हो जाता हूँ, मैं येसा भी नहीं कर सकता क्योकि वो मुझे तनहा रहने नहीं देती. फिर सोचा के सायद अपने आप को मोहलत ही न दूँ के उसे याद कर सकूँ तो शायद सब ठीक हो जायेगा. पर सिर्फ सोचा ही था, होने वाला कुछ नहीं था. जिस आदमी को सिर्फ एक ही काम आता हो, और वो बही न करे, तो क्या कुछ ठीक होगा,? नहीं न..! मुझे सिर्फ एक ही काम आता था, उसे प्यार करना बस...

पर फिर भी कोसिस करने में क्या जाता है, किसी ने सच ही कहा है के "हिम्मत-ये-मरदा, तो मदद-ये-खुदा". बहुत सारे दोस्त बनाना सुरु कर दिया, चैट करनी सुरु कर दी, प्यार वाली बाते करने लगा, और फिर लडकियों की कमी भी नहीं थी मेरे पास, बस सब से बास्ता खतम कर दिया था जब से प्रिया मेरी जिन्दगी में आई थी. फिर से उन सबको खोज लिया. और उसे भुलाने के लिए उनसे नजदीकियां बढ़ने की सोची.

एक लड़की नीतू के साथ मै चैट कर रहा था. और वो चैट प्रिया भी देख रही थी, मेरी ID खोलकर. मै ये नहीं कह रहा की मेरी गलती नहीं थी. हा थी मेरी गलती के मै लड़कियों से फ्लर्ट कर रहा था. पर मैंने कभी किसी का दिल नहीं तोडा, कभी किसी को चोट नहीं पहुचाई, बस हँसता था हसाता था, फ्लर्ट करता था, और अगर लगा के कोई दिल पे ले रहा है, तो उसे बही रोक देता था के नहीं अब आगे नहीं. यही मेरी गलती थी.

प्रिया ने मेरी और नीतू की चैट देख ली और मेरे 3 साल के प्यार पे उसे इल्जाम लगते देर न लगी. कभी कभी तो ये लगता है के ये लड़कियां हर वक़्त सिर्फ मौके की तलाश मै होती है की कब मौका मिले और दूसरे आदमी को नीचा दिखा सके. और मैंने उस लड़की से तब चैट की जब प्रिया किसी और की हो चुकी थी, पर फिर भी उसे बुरा लगा, लगाना भी चाहिए के अभी तो एक दिन ही हुआ है इस लड़के को तो पागल हो जाना चाहिए था, बावरा होके गलियों मै घूमना चाहिए था, आखिर दूसरे दिन ही इसे दूसरी कैसे मिल गई..... बुरा तो लगाना था.

फिर लड़कियां एक बात का इतना बड़ा पोस्टमार्टम भी करती है, की पूछो ही मत. दिमाग मै कई सवाल, के एक दिन मै कोई लड़की एसे कैसे बात कर सकती है.? उसने येसा क्यों कहा.? उसने बैसे क्यों कहा.? जरूर पहले भी बात करते होंगे.? और भी पता नहीं क्या क्या..

खैर उसने मुझे बेबफा करार दे दिया... मुझे अभी भी समझ नहीं आया की आखिर बफा किसने की....

फिर उसी दिन मैंने उसे आखिरी सन्देश भेजा

"मैं बेबफा ही सही, पर प्यार सिर्फ तुमसे करता हूँ. पर अब तुम मुझे कभी नहीं पा पाओगी मैंने अपना चैटिंग साईट बंद कर दिया है. "ना रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी"

और अब मैं एक दूसरे सहर मै पहुचने वाला हूँ, और जब बापिश इस सहर मैं आऊंगा तो कोई दूसरी ही कसक लेके....

अमित बी. के. खरे
"कसक"

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