नज़र बचाकर, नज़र से देखते हैं,
हम तुम्हे बड़े डर से देखते हैं..!
मैंने तेरे चहरे की किताब को पढ़ा है,
तू सोचती है हम, बुरी नज़र से देखते है..!!
क्यों सोचती हो मेरे बारे मे येसा,
क्यों मुझे समझा नहीं..!
क्या चाहा तुने मुझसे,
मैं भी जिसे समझा नहीं..
कुछ सुनाओ तुम बता कर,
जा रहे हो क्यों सता कर..!
आज भी नज़र झुका कर,
तुम्हे नज़र से देखते है..!!
क्यों तुम रुठते हो हमसे,
हम पूछते हैं तुमसे..!
तुम जानो या न जानो,
हम हैं जहा मैं तुमसे..!!
सबसे नज़र बचा कर,
खुद को यूँ जला कर..!
देवी तुम्हे बना कर,
दिल जिगर से पूजते है..!!
नज़र बचाकर, नज़र से देखते हैं,
हम तुम्हे बड़े डर से देखते हैं..!
मैंने तेरे चहरे की किताब को पढ़ा है,
तू सोचती है हम, बुरी नज़र से देखते है..!!
अमित बृज किशोर खरे
"कसक"
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