सब कुछ तो है मेरे पास,
पर कुछ भी नहीं..
उम्मीद से ज्यादा,
मुझे मिल रहा है,
फिर भी है कुछ कमी है...
कुछ खाली खाली सी,
जिंदगी लग रही है..
लग रहा है,
कुछ सूना सूना सा..
खुशबू चरों तरफ है,
पर लग रहा है,
कुछ बुझा बुझा सा...
शायद कुछ कमी है,
आँखों मै अभी नमी है,
शूखने को जा रहीं थी...
पर जल उठीं अधर मै...
खो गई सज़र मै...
प्यासी है मेरी ज़मीं,
और प्यासा हु मैं..
जल रहा हूँ हर पल,
पर बुझा बुझा सा हु मैं...
दिल धड़क रहा है अभी भी,
मध्यम मध्यम,
शायद कुछ ही पलों मै,
रखने वाला है सफ़र...
शायद कुछ ही पलों मै,
'कसक' भी रुक जाये..
और कसक की शाशें भी,
शायद रुक जाये...
अमित बृज किशोर खरे
"कसक"
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