Wednesday, August 29, 2012

अब वक़्त है "कसक" के चैन से सो जाऊ....!!!

 
यूँ पल-पल मरने से अच्छा है, एक बार मर जाऊ,,
आंशु बनके आँखों से, एक बार बिखर जाऊ...

अब इस मुकम्मिल जहाँ में, मेरे लिए कुछ न बचा,,,
सोचता हूँ अब सागर की गहराई में उतर जाऊ...

हर रास्ता जा रहा है, बस उसी की तरफ,,,
अब जाऊ भी तो कैसे और कहाँ जाऊ...??

उससे तो सुना दिया फरमान ताबीर-ये-ख्याब का,,,
अब ठहरूँ, या ख्याब की तरहा बिखर जाऊ...??

ये आखिरी कील थी मेरे मुहब्बत-ये-ताबूत में,,,
अब वक़्त है "कसक" के चैन से सो जाऊ...


अमित बृज किशोर खरे
"कसक"

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