Tuesday, February 14, 2012

इस कदर कश पे कश मैं लगता चला गया...!!!


नफ़रत मिली और प्यार मैं करता चला गया,,,
यूँ धुयें का कारवां बढ़ता चला गया...!

आँधियों में बह गयी है उस वक़्त की तस्वीर,
खोजने को उस दिशा में बढ़ता चला गया...!

कश-म-कश में, एक कश में भी दिखती है ज़िन्दगी,
इस कदर कश पे कश मैं लगाता चला गया...!

हर तरफ धुयाँ ही धुयाँ है देखता हूँ जहाँ,
ज़िन्दगी को इस धुयें से बुझाता चला गया...!

इस तरहा ढह गया था मेरा आशियाँ 'कसक',
सबके घरों में ठोकर लगाता चला गया...!

नफ़रत मिली और प्यार मैं करता चला गया,,,
यूँ धुयें का कारवां बढ़ता चला गया...!

अमित बृज किशोर खरे
"कसक"

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