Tuesday, August 28, 2012

एक कहानी ख़तम होने को है....!!!!



और एक कहानी ख़तम होने को है,
फिर से वो काली रात होने को है..

बड़ी कसमकस थी, बड़ी आरजू थी,
थे बोल उसके मेरी बान्शुरी थी..
यूँ हसने का हमको मिला ये सिला है,
अब हस्ते है खुद पे, न तुझसे गिला है..

तुमको पता है, और मुझको यकीं है,
के मेरा आफ़ताब अब खोने को है....

इस नींद की भी हमसे बड़ी बेरुखी है,
न जाने इन आँखों में ये कहाँ पे रुकी है..
इस नींद को तलाशने में, सारे आंशु गुज़र गए,,
और इन सूखी आँखों मै अब अँधेरे पसर गए...

लिखा भी नहीं जाता दर्द इससे आगे "कसक"
सायद ये कलम भी अब थक के रोने को है....


अमित बृज किशोर खरे
"कसक"


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