Friday, October 1, 2021

पहली बारिश


इस तपती धूप को कचरे में डालकर,

पुरानी यादों का रैनकोट निकालकर,

चलो पहली बारिश में भीगते हैं।

 

वो सारी कड़वी बातें बहा देतें है पानी में,

फिर से डूबते हैं चलो मौसम की रवानी में।

उन सब कटीली बातों को बक्से में छुपाकर,

पहली मुलाकात का बस एक लम्हा उठाकर,

चलो पहली बारिश में भीगते हैं।

 

तुम भूल जाना हर वो मंजर, हर घड़ी, जो तुमको चुभती थी,

मैं भी भुला दूंगा वो काली रात, जो मुझको डसती थी।

दरमियाँ हैं जो दूरियां उनको मिटाकर,

सुनहरे पलों की चासनी चटाकर,

चलो पहली बारिश में भीगते हैं।

 

क्या मैंने किया, क्या तुमने किया, सब भूल जाते हैं,

कुछ तुम चलो, कुछ हम चले और ये फ़ासला मिटाते हैं।

कुछ तेरे, कुछ मेरे सारे रंग लगाकर,

एक सुनहरी सी छतरी बनाकर,

चलो पहली बारिश में भीगते हैं।

 

मैं चाय कुछ फीकी सी रखूँगा,

पर पकोड़े तुम्हारे हाथ के चखूँगा,

चिड़ियों के जैसा घौंसला बनाकर,

उसमें अरमानों के पंख लगाकर,

चलो पहली बारिश में भीगते हैं।

 

तुम जैसे हो, मेरे लिए काफी हो,

हमारे बीच न शुक्रिया न माफ़ी हो।

मैं और तुम को हम बनाकर,

और खुद से खुद को मिलाकर।

चलो पहली बारिश में भीगते हैं।

 

 

अमित बीके खरे 'कसक'





 

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