यूँ ही चल रहे
थे हम, रिश्तों के बोझ को
उठाते हुए,
अपनों को भुलाते हुए,
गैरों को मनाते हुए।
खुद से लड़ते हुए,
यादों से झगड़ते हुए,
और बेगैरत दायरे से उबरते हुए।
बदन पे खादी का
कुर्ता, और आँखों पे
मोटा चस्मा,
हांथों में कलम थी जब दिखा
कोई अपना।
यूँ मिला तो कहा, यार
तेरे तो सफ़ेद हो
चले बाल हैं,
चलो छोड़ो, और सुनाओ क्या
हाल हैं।
चाय की टपरी पे,
सिगरेट के छल्लों के
साथ,
वो बचपन के किस्से, जवानी
की बात।
हमने धुंये के जैसे हवा
में उड़ा दी,
कुछ इस तरह हमने
अपने अकेलेपन को हवा दी।
पुराने दोस्त अब बस फ़ोन
नंबर बन के रह
गए हैं
मेहमान सारे इंस्टाग्राम स्टेटस पे बिखर गए
हैं।
कहने को सब बढ़िया
है पर हाल ये
बेहाल है
चलो छोड़ो, और सुनाओ क्या
हाल हैं।
अच्छा वो दिन याद
हैं, जब पहली बार
मिले थे,
तुम लाल सुर्ख कुर्ते में थी और मेरे
जुटे फटे थे।
कैसे खिलखिलाकर सब मेरी हालत
पे हंसें थे,
और तुमने तब अपनी चुन्नी
से मेरे जुटे ढके थे।
चॉकलेट के खाली रैपर,
जो तूने यहाँ वहां फेके थे,
मैंने संजो के वो सारे
अपनी किताबों में समेंटे थे।
जो किताबों में रखा था, क्या वो गुलाब अब
भी लाल
है।
चलो छोड़ो, और सुनाओ क्या
हाल हैं।
रिश्तों में अपनापन था, कोई दिखावा नहीं,
चेहरे सबके एक थे, कोई
छलाबा नहीं।
आज हम रिश्तों के
मायने टटोलते हैं
जिसमे फायदा है सिर्फ वही
बटोरते हैं।
खुद आईने के सामने, खुद
से झूंठ बोलने लगें हैं,
और हमें लगता है कि सोशल
होने लगे है।
इतने अकेले हो गये है
कि सिर्फ खुद का ख्याल है,
चलो छोड़ो, और सुनाओ क्या
हाल हैं।
और सुनाओ क्या हाल हैं।
ये बस एक छोटा
सा सवाल है।
जिसे पूंछकर हम दूसरे का
सिर्फ मन रख रहे हैं,
हमें भी पता है
कि हम सिर्फ बातों
का सिलसिला ख़तम कर रहे हैं।
बड़े तपाक से हम सबसे ये सवाल कर
लेते हैं,
हमने तो उसे पूछ
लिया, अपनी जिम्मेदारी बहाल कर लेते हैं।
जवाब भी हमें बस
रटा - रटाया ही मिलता है,
'बस कट रही है'
या फिर 'बस भाई सब
चंगा है"
अपनी तो वही हड्डी
वही खाल है
और तुम सुनाओ क्या हाल हैं।
जब भी ये सवाल
पुछा जाये तो समझ लेना,
कि बातें बहुत हो चुकी, अब
अलविदा कहना है,
चलो फिर कभी मिलते हैं या टच में
रहना,
सब अच्छा होगा, इसी उम्मीद पे टिके रहना।
बस यही सच, यही ख्याल है
चलो छोड़ो, और सुनाओ क्या
हाल हैं।
अमित बीके खरे 'कसक'
Insta: @amitbkkhare, @kasakastory
No comments:
Post a Comment