बहुत कुछ कहना था पर कुछ कह न सका।जो आँशु रोक लिया था वो अब तक बह न सका।बहुत कुछ है कहने को पर अब अल्फाज नहीं हैं,तेरे जाने के बाद दिल में अब जज्बात नहीं हैं।अब अंदर कुछ टूट सा गया है,कोई अपना जो रूठ सा गया है।दिल के अंदर बहुत कुछ चल रहा है,खामोसी का दरिया सायद मचल रहा है।इस दरिया को बह जाने दो थोड़ा रास्ता तो दो,ये रुक भी जायेगा तुम थोड़ा वास्ता तो दो।अब इस भीड़ में हम अकेले है कहें भी तो किस से कहें,किस से करूँ शिकायत तेरी, किस से हमारे किस्से कहें।मैं तुमसे कुछ कहना चाहता था, तुमसे कुछ सुनना चाहता था,बेबजह ही सही, बहुत से ख्वाब बुनना चाहता था।रूठना चाहता था, मानना चाहता था,क्या थी तुम मेरे किये ये सब बताना चाहता था।वो सारे लम्हे जो कहीं बिखर गए टूटे कांच की तरह,उन्हें तेरे संग बिताना चाहता था।पर सिर्फ चाह भर लेने से सब कुछ मिलता नहीं हैं,जो जख्म अपनों ने दिया हो वो सिलता नहीं है।अब सोचता हूँ की काश ऐसा करता तो वैसा होता,और जब वैसा होता तो कैसा होता।इन्ही ख्यालों में ये रात गुजर जाती है,पर जो बात तुम्हे कहनी थी वो वहीँ ठहर जाती है।काश उस दिन तुमने मुझे पुकारा होता,काश वो पल तुमने न गुजरा होता।काश मैं ही तुमसे मिल लेता,तेरे घाव थोड़े बहुत तो सिल देता।हमारी वो लम्बी बातें तुम्हें एक पल के लिए भी याद नहीं आयीं।हाँ माना कम थीं पर हमारी मुलाकातें भी याद नहीं आयी।मैंने तुमको और तुमने मुझको हर बात बताई थी,पर बस इतना बता दो वो छोटी सी बात क्यों छुपाई थी।वो बात जो तुम्हे अंदर से तोड़ रही थी,जो तुम्हारा रास्ता गुमनामियों की तरफ मोड़ रही थी।बात करने से ही मसलों का हल निकलता है,खामोशियों में तो अंधेरों को मंजर गुजरता है।हाँ माना हम कोई प्रेमी जोड़े नहीं थे,पर रिश्ते दोस्ती के हमने तोड़े नहीं थे।ये BFF का तमगा हम दोनों के गले में था,अरे मैं दोस्त था तेरा, कोई आशिक़ भले न था।दोस्ती में तो हमारी हर बात साँझा होती थी,इस दोस्ती की मैं पतंग, तू मांजा होती थी।याद है ना कितनों के छक्के हमने मिलके छुटाये थे,वो हसीन पल जो हमने हंस के बिताये थे।उन पलों को थोड़ा बहुत तो याद कर लेती,छोटे से थे तेरे सपने, उन्हे अपनी मुट्ठी में भर लेती।किसी और के लिए नहीं, अपने लिए तो रुक जाती,जो तेरे सब कुछ थे उनके लिए थोड़ा तो झुक जाती।हाँ माना 4 बर्तन होते हैं तो आवाज करते हैं,कुछ दर्द दिल को नासाज करते हैं।पर बात करने के दर्द बट जाता है,अंधेरों का बदल छत जाता है।काश उन दिन तुमने, बोतल के बदले फोन उठाया होता,काश उससे भीगने से पहले, मुझे बताया होता।काश तुमने अपने आप को आग में न झोंका होता,काश तुम्हे बापस लाने का मेरे पास एक मौका होताकाश, काश उस दिन वो रात न होती,काश तेरे घर में वो बात ना होती।काश आज तूँ मेरे पास होताकाश, ये काश न होता।काश मैं तुमसे बात करता,थोड़ी बहुत नहीं सारी रात करता।काश ये इंतज़ार न होताकाश मैं इतना बेबस और लाचार न होता।काश उस दिन हमारी मुलाकात होती,तो तूँ आज मेरे साथ होती।काश उन दिन हमारी बात होती।काश उन दिन हमारी बात होती।
अमित बीके खरे 'कसक'
No comments:
Post a Comment