आज तेरी याद आई, तो सोचा एक ग़ज़ल लिख दूँ..!
बढ़ने लगी तन्हाई, तो सोचा एक ग़ज़ल लिख दूँ..!!
जलते हुये दिलों को देखा जो पास जाके,
खुद से हुई लड़ाई, तो सोचा एक ग़ज़ल लिख दूँ..!!
लड़खड़ाते से गिर रहे थे, जब आये आँखों के मैखाने से,
शाकी से हुई सगाई, तो सोचा एक ग़ज़ल लिख दूँ..!!
उल्टा चल रहा है, दुनिया में मुहब्बत का शिलशिला,
पानी ने आग लगाई, तो सोचा एक ग़ज़ल लिख दूँ..!!
यूँ बुझते-बुझते बुझ गया, "कसक" तेरा दिया,
अपनों ने लौ बुझाई, तो सोचा एक ग़ज़ल लिख दूँ..!
आज तेरी याद आई, तो सोचा एक ग़ज़ल लिख दूँ..!
बढ़ने लगी तन्हाई, तो सोचा एक ग़ज़ल लिख दूँ..!!
अमित बृज किशोर खरे
"कसक