Sunday, February 26, 2012

आज तेरी याद आई, तो सोचा एक ग़ज़ल लिख दूँ..!!



आज तेरी याद आई, तो सोचा एक ग़ज़ल लिख दूँ..!
बढ़ने लगी तन्हाई, तो सोचा एक ग़ज़ल लिख दूँ..!!

जलते हुये दिलों को देखा जो पास जाके,
खुद से हुई लड़ाई, तो सोचा एक ग़ज़ल लिख दूँ..!!

लड़खड़ाते से गिर रहे थे, जब आये आँखों के मैखाने से,
शाकी से हुई सगाई, तो सोचा एक ग़ज़ल लिख दूँ..!!

उल्टा चल रहा है, दुनिया में मुहब्बत का शिलशिला,
पानी ने आग लगाई, तो सोचा एक ग़ज़ल लिख दूँ..!!

यूँ बुझते-बुझते बुझ गया, "कसक" तेरा दिया,
अपनों ने लौ बुझाई, तो सोचा एक ग़ज़ल लिख दूँ..!

आज तेरी याद आई, तो सोचा एक ग़ज़ल लिख दूँ..!
बढ़ने लगी तन्हाई, तो सोचा एक ग़ज़ल लिख दूँ..!!

अमित बृज किशोर खरे
"कसक

Friday, February 24, 2012

तू सोचती है हम, बुरी नज़र से देखते है..!!


नज़र बचाकर, नज़र से देखते हैं,
हम तुम्हे बड़े डर से देखते हैं..!
मैंने तेरे चहरे की किताब को पढ़ा है,
तू सोचती है हम, बुरी नज़र से देखते है..!!

क्यों सोचती हो मेरे बारे मे येसा,
क्यों मुझे समझा नहीं..!
क्या चाहा तुने मुझसे,
मैं भी जिसे समझा नहीं..

कुछ सुनाओ तुम बता कर,
जा रहे हो क्यों सता कर..!
आज भी नज़र झुका कर,
तुम्हे नज़र से देखते है..!!

क्यों तुम रुठते हो हमसे,
हम पूछते हैं तुमसे..!
तुम जानो या न जानो,
हम हैं जहा मैं तुमसे..!!

सबसे नज़र बचा कर,
खुद को यूँ जला कर..!
देवी तुम्हे बना कर,
दिल जिगर से पूजते है..!!

नज़र बचाकर, नज़र से देखते हैं,
हम तुम्हे बड़े डर से देखते हैं..!
मैंने तेरे चहरे की किताब को पढ़ा है,
तू सोचती है हम, बुरी नज़र से देखते है..!!

अमित बृज किशोर खरे
"कसक"

Tuesday, February 21, 2012

कब मेरा दीपक बुझ जाये..!!



ज्यों - ज्यों धुंधली रात की छाये,
त्यों - त्यों मेरा मन घबराए..!
पता नहीं कब हो अँधेरा,,
कब मेरा दीपक बुझ जाये..!!

पता नहीं ये कैसा पल है,
क्यों मेरा ये मन बोझल है..!
सारी दुनियां सो गई अब तो,,
क्यों मेरी आँखें खुल जायें..!!

ज्यों - ज्यों धुंधली रात की छाये,
त्यों - त्यों मेरा मन घबराए..!

आज अभी इस वक़्त यहीं थी,
खुशियों की कोई कमी नही थी..!
पर येसा क्या हुआ अभी ये,,
पास भी रहके दूर भी जाये..!!

ज्यों - ज्यों धुंधली रात की छाये,
त्यों - त्यों मेरा मन घबराए..!
पता नहीं कब हो अँधेरा,,
कब मेरा दीपक बुझ जाये..!!

अमित बृज किशोर खरे
"कसक"

Sunday, February 19, 2012

जैसे तुम आ गये..!!


यूँ झलके मेरे आँसूं, जैसे तुम आ गये..!
आये भी नहीं और हमको रुला गये..!!

दस्तक हुयी, और दिल मे तरनुम फूटने लगे,
जब दरवाजा हिला तो लगा, जैसे तुम आ गये..!!

हवायों ने भी हमसे किया खूब मजाक,
यूँ हवा का झौंका आया, जैसे तुम आ गये..!!

रात को हमने गिन लिए थे बहुत से तारे,
यूँ निकला अब के चाँद, जैसे तुम आ गये..!!

वो तबस्सुम, वो प्यार, वो इकरार की बातें,
करने लगे आईने से तो, जैसे तुम आ गये..!!

रख दो कुछ और नाम बदल के मेरा "कसक",
यूँ लिया अपना नाम, जैसे तुम आ गये..!!

अमित बृज किशोर खरे
"कसक"

Wednesday, February 15, 2012

हम हर पल तेरे साथ है..!!!



कभी तो उठा के देखो,
कदम अपने अरमानों के..!
कभी तो सजा के देखो,
सपने अनचाहे महमानों के...!!

बंदिशों की जंजीरों का,
अहसास है बहुत प्यारा..!
पर बंदिशें हो वो प्यार की,
तो रूठ जाये जग सारा...!!

कभी तो ड़ोलो संग,
मस्ती में परवानों के...!!
कभी तो उठा के देखो,
कदम अपने अरमानों के..!!

सागर की वो उठती लहरें,
नाचती गाती मन की लहरें..!
सीधा साधा प्यार का नाता,
अपनों के संग गाती लहरें...!!

तुम लहरों की साथी बनकर,
डुबो साथ दीवानों के...!!
कभी तो उठा के देखो,
कदम अपने अरमानों के..!!

क्यों सुनते हो गैरों की,
क्यों चिंता है अनजानों की..!
तुम हो प्यारी आज़ाद परी,
उड़कर, मंजिल छूलो अरमानों की...!!

हम हर पल तेरे साथ है,
क्यों परवाह है बेगानों की...!!
कभी तो उठा के देखो,
कदम अपने अरमानों के..!!

अमित बृज किशोर खरे
"कसक"

Tuesday, February 14, 2012

इस कदर कश पे कश मैं लगता चला गया...!!!


नफ़रत मिली और प्यार मैं करता चला गया,,,
यूँ धुयें का कारवां बढ़ता चला गया...!

आँधियों में बह गयी है उस वक़्त की तस्वीर,
खोजने को उस दिशा में बढ़ता चला गया...!

कश-म-कश में, एक कश में भी दिखती है ज़िन्दगी,
इस कदर कश पे कश मैं लगाता चला गया...!

हर तरफ धुयाँ ही धुयाँ है देखता हूँ जहाँ,
ज़िन्दगी को इस धुयें से बुझाता चला गया...!

इस तरहा ढह गया था मेरा आशियाँ 'कसक',
सबके घरों में ठोकर लगाता चला गया...!

नफ़रत मिली और प्यार मैं करता चला गया,,,
यूँ धुयें का कारवां बढ़ता चला गया...!

अमित बृज किशोर खरे
"कसक"

क्या चल रहा है ये शिलशिला...???



क्या चल रहा है ये शिलशिला...???
शायद खुद भी तो नहीं मालूम...
मै सोचता हूँ हर पल कुछ याद नहीं आता,,,
क्या इसी को प्यार कहते है..???

शायद नहीं मालूम मुझको,,
और शायद मालूम भी नहीं उसको...
पर कुछ तो हम कर ही सकते है,,,
क्या कुछ भी नहीं कर सकते...???

ये सवाल कुछ अजीब सा नहीं लगता हमको,,,
येसा सवाल जो खुद से पूंछा जाये...
और शायद इस सवाल का जवाब भी नहीं मालूम...
और एसे सवाल का मशला भी,,,
कुछ हल-सा होता नज़र नहीं आ रहा...

शायद प्यार यही होता है,,,
एक हँसता है, एक रोता है...
पर कुछ समझ नहीं आता,,,
ये प्यार क्या होता है...???

उसने भी तो मेरे सारे ख़त जला दिए,,,
क्या मै येसा करूँ तो सही होगा...???

शायद तो सही होना चाहिए,,,
पर मेरा दिल गवाही नहीं देता...
के उसकी आखरी निशानियों को भी,,,
आग के हवाले कर दूँ...

पर मैं ख़त तो जला ही सकता हूँ,
और पता अपने पास रख लेता हूँ..
ताकि आगे मुलाकातों का शिलशिला,
शायद कभी बन जाये...

शायद मैं सही हूँ, शायद मैं गलत हूँ...
क्या सोचता हूँ मैं, शायद खुद भी तो नहीं मालूम...!!!

अमित बृज किशोर खरे
"कसक"

Saturday, February 11, 2012

वो जाते भी है छोड़ कर, और कहते भी है के तुम्हारी याद आएगी...!!!!!


वो जाते भी है छोड़ कर,
और कहते भी है के तुम्हारी याद आएगी,,

पल पल में दर्द का अहशाश बढ़ता भी है,
और अगले पल मे शायद जान निकल जाएगी..

बस कुछ वक़्त ही तो बाकि है,
जैसे ही शाम होगी, रोशनी चली जाएगी...

ना कभी रोका था, ना कभी रोकेगा "कसक",
बस यही कहते-कहते बदली गुज़र जाएगी...

बस शायद अब कुछ ना बचा उस सज़र की तपिश मे,
अब इस दिल की तपिश से आँखे बिखर जाएँगी...

अमित बृज किशोर खरे
"कसक"

Monday, February 6, 2012

शायद प्यार यही होता है.....!!!!


बहुत दिनों से मेरा दिल मुझसे एक सवाल,
पूछ रहा था,,,
के ये प्यार क्या होता है..???
और मेरे पास उस सवाल का कोई,,,
जवाव भी न था...

पर शायद अब,
ये एहसास हो चला है...
के प्यार क्या होता है...???

जिसे चाहो, उसके ऊपर,
सारी जिंदगानी लुटा दो...
उसकी एक हसी पे,
अपनी सारी निशानी लुटा दो...

प्यार तो सब कुछ देके,
किसी के गालों पे,
उभरते गड्ढों का नाम है....

प्यार तो नाम है,,,
उस शुबहा का,
जो उसके चहरे से,,
खिलती है....
और उस चांदनी का,,,
जो उसकी आँखों,,,
से झलकती है....

प्यार तो शायद,,,
उस इल्तजा का नाम है,,,
जो रहती है,,
हर रोज़ मेरे ख्यालों मै...
और नाम है,,,
उस ख्वाहिश का नाम है,,,
जो रहती है,,,
मेरे ज़हन मै....

प्यार तो शायद,,,
उस इल्तजा का नाम है,,,
जो रोज़ दिल से निकलती है....
और शायद उस तमन्ना का,,,
जो तुम्हे पाना चाहती है...

पर पाने का नाम प्यार नहीं...
प्यार तो किसी के लिए लुट जाने का नाम है...

शायद प्यार यही होता है.....
शायद प्यार यही होता है.....

अमित बृज किशोर खरे
"कसक"

Sunday, February 5, 2012

वो घोंशला जो मैंने एक परिंदे के लिए बनाया था…!!!!


वो घोंशला
जो मैंने एक परिंदे के लिए बनाया था…

बहुत प्यार से उसमे,,,
चंद शीन्कें ही तो लगा पाया था…
कुछ चंद मुलाकातों की,,,
चंद हरी पत्तिया ही तो सजा पाया था…

दो-तीन प्यार भरे कांटें भी थे,,
हमारे झगड़ों के…
और आशाओं का,,,
नया सुनेहरा आशमान ही लुटा पाया था…

अब जब परिंदे ही नहीं,,,

तो टूटे सपने देखू भी,,,
तो किसके लिए…???
तो घोंशले को संजो के रखु भी,,,
तो किसके लिए…???

कसक के घोशले मे,,,
'कसक' की कसक,,
अधूरी रह गई......

अमित बृज किशोर खरे
'कसक'

मैं हमेसा यहीं हूँ तुम्हारे लिए..!!!


आखिर मैं तुम्हें क्यों रोकूँ…?
क्यों कहूँ के तुम सब कुछ हो मेरे लिए…?

क्या रोकने से तुम रुक जाते…?
फिर से एक सवाल खड़ा हो गया ज़िंदगी में…

अगर रुकना होता….
तो मेरी आँखों में जो इंतज़ार है तुम्हारे लिए,
उसे देखकर रुक जाते…

मेरे होठों की खामोसी,
जो दर्द-ए-मोहब्बत कह रही है,,
उसे सुनकर रुक जाते…

मेरी बाँहों का खालीपन,
जो चीख - चीख कर तुम्हारे दिल पे दस्तक दे रहा है…
उस दस्तक पे ठहर जाते…

जब तुमने महसूस ही नहीं किया इन सब को…
तो मेरे दो शब्द "मत जाओ"
कहने से क्या होता…?

शायद कुछ नहीं…
क्योकि शायद इन सब में…
तुम्हारी ख़ुशी नहीं थी…

तभी तो जब तुम जा रहे थे 
इन सब ने तुम्हे रोकने,
की कोशिश तो बहुत की…

मगर 'कसक’ के दिल की,
कसक कुछ और थी…
वो जीत कर हारना नहीं चाहता था…

वो चाहता था, और चाहता है,
के तुम खुश रहो…

'कसक’ अब इसी मोड़ पर खड़ा है,
आँखों में वही इंतज़ार की बूँदें लिए,
होठों के बही ख़ामोशी लिए 
और बाँहों में खालीपन के साथ…

अगर कभी तुम इस मोड़ से गुजरो,
तो मैं हूँ यहाँ, तुम्हारा हाथ थामने के लिए…

मैं हमेसा यहीं हूँ तुम्हारे लिए.. 
मैं हमेसा यहीं हूँ तुम्हारे लिए.. 

अमित बृज किशोर खरे 
"कसक"