Thursday, March 29, 2012

तुम्हारी बेरुखी से ज्यादा फर्क नहीं पड़ा... कुछ नहीं बदला...!!!!



तुम्हारी बेरुखी से ज्यादा फर्क नहीं पड़ा..
कुछ नहीं बदला...

सांसें उसी तरहा चलती हैं,,
बैसे ही जैसे पहले...
दिल धड़क रहा है अभी भी,
बैसे ही जैसे पहले...
आँखें भी झपकती हैं अभी तक,
बैसे ही जैसे पहले...

बस अब भरोसा नहीं,,,
सांसो पे, धड़कन पे, और आँखों पे,,,
पता नहीं कब इनका,
सफ़र रुक जाये...

भरोसा उतर गया,,
और कुछ भी नहीं बदला....

हवाएं अभी भी चलती हैं,
पहले की तरहा...
फिजायें अब भी आती हैं,
पहले ही तरहा...
बहारें अब भी आती है,
पहले की तरहा...

बस अब भरोसा नहीं,,,
हवाएं अब दूसरी हैं...
फिजायें अब दोसरीं हैं...
बहारें अब दूसरीं हैं...

ये मेरे लिए नहीं...
बस मेरे लिए नहीं...
मौसम अब बदल गया,,,
और कुछ भी नहीं बदला...

सूरज अब भी निकलता है,
पर तपन देता है...
साँझ अब भी होती है,
पर अब चुभन देती है...
रात अब भी आती है,
पर अब डर देती है...

बस और कुछ भी नहीं आता,
सिवाए तेरी यादों के..
और कुछ नहीं बदला,
पहले बंद आँखों में सपने थे,
पर अब नींद भी नहीं...

बस और कुछ भी नहीं बदला...
तुम्हारी बेरुखी से ज्यादा फर्क नहीं पड़ा..
कुछ नहीं बदला...
बस और कुछ भी नहीं बदला...

अमित बृज किशोर खरे
"कसक"

Tuesday, March 27, 2012

फिर भी है कुछ कमी है...!!!


सब कुछ तो है मेरे पास,
पर कुछ भी नहीं..
उम्मीद से ज्यादा,
मुझे मिल रहा है,
फिर भी है कुछ कमी है...

कुछ खाली खाली सी,
जिंदगी लग रही है..
लग रहा है,
कुछ सूना सूना सा..

खुशबू चरों तरफ है,
पर लग रहा है,
कुछ बुझा बुझा सा...

शायद कुछ कमी है,
आँखों मै अभी नमी है,
शूखने को जा रहीं थी...

पर जल उठीं अधर मै...
खो गई सज़र मै...

प्यासी है मेरी ज़मीं,
और प्यासा हु मैं..
जल रहा हूँ हर पल,
पर बुझा बुझा सा हु मैं...

दिल धड़क रहा है अभी भी,
मध्यम मध्यम,
शायद कुछ ही पलों मै,
रखने वाला है सफ़र...

शायद कुछ ही पलों मै,
'कसक' भी रुक जाये..
और कसक की शाशें भी,
शायद रुक जाये...

अमित बृज किशोर खरे
"कसक"

Monday, March 26, 2012

अब तन्हाई में और मुस्कुराया भी नहीं जाता...!!!



अब तन्हाई में और मुस्कुराया भी नहीं जाता..!
वो संग-दिल सनम अब भुलाया भी नहीं जाता..!!

दर्द भी येसा है की बयां नहीं होता,
ये दर्द-ए-दिल किसी को सुनाया भी नहीं जाता..!

सोचता हूँ जाके सारी शिकायतें कर दूँ उससे,
पर उन प्यारी सी दो आँखों को रुलाया भी नहीं जाता..!

अजीब सा डर बस चूका हैं उजालों का ज़हन में,
और इस कम्बखत दिल को सुलाया भी नहीं जाता..!

चुन्ने को चुन लूँ दो उलझनें हैं मेरे दरमियाँ,
एक जिंदगी रुक गई, और एक मौत को बुलाया नहीं जाता..!

क्यों रास्तों में बीरानियाँ सी छाई हैं,
क्यों ये सफ़र अब गुज़ारा भी नहीं जाता..!

कह के गए थे वो के लौटेंगें चंद लम्हों में,
क्यों मुद्दतों के बाद भी मेरी कस्ती को किनारा भी नहीं आता..!

ये कैसी बेबसी है मुहब्बत-ए-हिज्र मै 'कसक'
दूर भी हैं मुझसे और उनको पुकारा भी नहीं जाता..!

अब तनहाई में और मुस्कुराया भी नहीं जाता..!
वो संग-दिल सनम अब भुलाया भी नहीं जाता..!!

अमित बृज किशोर खरे
"कसक"

Saturday, March 24, 2012

तू जहाँ से भी गुज़रे वहां रोशनी हो..!!!


तू जहाँ से भी गुज़रे वहां रोशनी हो..!
तेरी राहों में बस ख़ुशी ही ख़ुशी हो..!!

तेरी पलकों पे हर दम सितारें सजे हो,
तेरी आँखों मै एक चमक दिल-नशीं हो..!

चाँद जलता रहे बस तुझे देख कर,
चांदनी एस कदर तेरे दिल मै बसी हो..!

मैं रहूँ न रहूँ इसका कुछ गम नहीं,
ना रहूँ गर तो दिल में तेरे कुछ तो कमी हो..!!

तू जहाँ से भी गुज़रे वहां रोशनी हो..!
तेरी राहों में बस ख़ुशी ही ख़ुशी हो..!!

अमित बृज किशोर खरे
"कसक"

आज क्यों येसा लगा कि कुछ खोने जा रहा हूँ..!!!




आज क्यों येसा लगा कि कुछ खोने जा रहा हूँ..!
अपने आप को खुद अश्कों मैं डुबोने जा रहा हूँ..!!

क्यों औरों कि तरहा मैं करता नहीं हूँ बातें,
क्यों आज अपने स्वरों को टटोने जा रहा हूँ..!

क्यों उठ रहा है दिल मे तबस्सुम सा अजाब,
क्यों मैं खुद के ख्यालों को संजोने जा रहा हूँ..!

"क्यों नहीं हैं", "क्यों नहीं हैं" कुछ चाँद ख़यालात हैं,
क्यों इन सवालातों मैं खुद को दवाये जा रहा हूँ..!

मुझे नहीं पता, क्या कोई बताएगा मुझे,
क्यूँ मैं इस कलम को चलाये जा रहा हूँ..!

इस कश-म-कश में शायद मर रहा हूँ मैं हर पल,
मर गया था "कसक" पहले ही, अब में मौत को टाले जा रहा हूँ..!

आज क्यों येसा लगा कि कुछ खोने जा रहा हूँ..!
अपने आप को खुद अश्कों मैं डुबोने जा रहा हूँ..!!

अमित बृज किशोर खरे
"कसक"

Saturday, March 17, 2012

मुझे मासूम सी पागल लड़की पे तरस आता है..!!



मेरी आँखों के समुन्दर में जलन कैसी है..!
आज फिर दिल को तड़पने की लगन कैसी है..!!

अब किसी चाहत पे चरागों की कतारें भी नहीं,
अब तेरे शहर की गलियों में घुटन कैसी है..!

बरफ के रूप में ढल जायेंगे सारे रिश्ते,
मुझसे पूछो मुहब्बत की अगन कैसी है..!

में तेरे प्यार की खुवाहिश को न मरने दूंगा,
मौसम-ऐ-हिजर के लहजे में थकन कैसी है..!

रहगुज़रों में जो बनती रही काँटों की रिदा,
उसकी मजबूर सी आँखों में किरन कैसी है..!

मुझे मासूम सी पागल लड़की पे तरस आता है,
उसे देखो तो, मुहब्बत में मगन कैसी है..!

मेरी आँखों के समुन्दर में जलन कैसी है..!
आज फिर दिल को तड़पने की लगन कैसी है..!!

अमित बृज किशोर खरे
"कसक"

Thursday, March 8, 2012

धूप के किनारे परछाइयाँ तो होती हैं..!!!!


प्यार मैं थोड़ी बहुत लड़ाइयाँ तो होती हैं..!
जैसे धूप के किनारे परछाइयाँ तो होती हैं..!!

क्या डरना है खुद से या किसी और से,
मुहब्बत मै थोड़ी रुश्बाइयाँ तो होती हैं..!!

यूँ ही नहीं बनता सपनो का महल,
प्यार मै थोड़ी सी प्यारी बेमानियाँ तो होती हैं..!!

कभी शरारत भरा गुस्सा, तो कभी मीठा सा प्यार,
हस्ते-हस्ते दिल की करिश्तानियाँ तो होतीं हैं..!!

हम तो साँस भी लेते हैं, तो उनकी खातिर,
इस तरहा हमारे दिल पे मेहरवानियाँ तो होती हैं..!!

वो प्यार ही क्या "कसक" जिसमे पागलपन न हो,
उनके होने पे जशन, और अकेले मै विरानियाँ तो होती हैं..!!

अमित बृज किशोर खरे
"कसक"

Thursday, March 1, 2012

मैं जिंदा हूँ अब तक के वो मुझे मरने नहीं देता..!!


जाने क्यों वो साँसों की डोर टूटने नहीं देता,
बस दो कदम और चलने का वास्ता देकर मुझे रुकने नहीं देता..!

बात कहता है वो मुझसे हस-हस कर जी लेने की,
अजीब शख्स है मुझको चैन से रोने नहीं देता..!

आज हौसला देता है मुझे चाँद सितारों को छू लेने का,
वो प्यारा सा चेहरा मुझे टूटकर बिखरने नहीं देता..!

शायद जानता है वो भी इन आँखों में आंसुओ का सैलाब है,
जाने क्यों फिर भी वो इन आंसुओ को गिरने नहीं देता..!

मुझसे कहता है, "की हमें चाहता है वो हद से ज्यादा",
मैं जिंदा हूँ अब तक के वो मुझे मरने नहीं देता..!