Wednesday, March 3, 2021

मेरी कहानी (पार्ट - 8) - चिट्ठियाँ


श्री मान कसक जी,

 

नमस्ते !

 

आशा करता हूँ की आप और आपका परिवार परमात्मा की असीम अनुकम्पा के साथ सुख और समृद्धि से जीवन यापन कर रहें होंगे। मैं आपकी रचनाओं का बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ और आपकी सारी रचनाएँ पड़ी, सुनी और देखीं हैं। आप बहुत अच्छा लिखते हैं और उतनी ही गहराई से उसे दुनियां के सामने रखते भी हैं। बहुत दिनों से सोच रहा था की आपसे वार्तालाप की जाये पर उलझन में था की कैसे ? फिर हमारे गूगल बाबा ने इस मसले का हल दिया और आपका पता मिल गया, हालाँकि आपका ईमेल और फ़ोन नंबर भी मिल गया था फिर सोचा कि आप लेखक हैं तो शायद चिट्ठी को कुछ ज्यादा तबज्जो देंगे, और इसीलिए इस अन्तर्देशी के माध्यम से आपके साथ जुड़ने का प्रयास कर रहा हूँ और अपनी शुभकामनायें आपको भेज रहा हूँ। मुझे विश्वास है की आप आगे भी इसी तरह, दिल को छूलेने वाली रचनाएँ हमें सुनाते रहेंगे। आपके पत्र की प्रतीक्षा में,

 

आपका

पोस्ट बॉक्स नंबर 1 9 8 2

 

ये चिट्ठी मुझे मेरे एक गुमनाम फैन ने मुझे कुछ दिनों पहले भेजी थी। थोड़ी ख़ुशी भी हुई पर ज्यादा सोचा नहीं और पढ़कर अपने दराज में डाल दी, ऐसा कुछ खास नहीं था इस चिट्ठी में। पर ये चिट्ठी कभी दरख्तों से, कभी सुराखों से, कभी किसी की बातों से तो कभी बोझल सी साँसों से बाहर निकलकर मेरे दिल का दरवाजा बार बार खटखटा रही थी और मैं उसकी आहट को अनसुना किये जा रहा था।

 

तभी बाहर दरवाजे पे किसी ने आवाज लगाई, "खरे साहब हैं"

वो बूढ़े हो चले पोस्ट ऑफिस के एक बुजुर्ग पोस्ट मैन थे जो मेरे लिए फिर एक चिट्ठी लाये थे।

 

चिट्ठी कुछ यूँ थी

 

श्री मान कसक जी,

 

नमस्ते ! प्रभु आपकी सारी महत्वकांक्षाएं पूरी करे। शायद आपको मेरी पहली चिट्ठी नहीं मिली, इसीलिए दूसरी लिख रहा हूँ। वो क्या है ना चिट्ठी लिखना मुझे अच्छा लगता है। और जब अपने सुपर स्टार के लिए लिखना हो तो मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहता और आप मेरे सुपर स्टार हो, जो बिना बात किये मेरे मन की सारी बात जान लेते हो। मैं आपकी कविताओं और कहानियों में खुद को ढूढ़ लेता हूँ, ऐसा लगता है कि ये तो मेरी ही कहानी है। आपका बहुत बहुत धन्यवाद मुझे मुझसे मिलाने के लिए। आपके पत्र की प्रतीक्षा में,

 

आपका

पोस्ट बॉक्स नंबर 1 9 8 2

 

दूसरी चिट्ठी थी तो जबाब तो बनता था। कोई मेरा फैन था यकीन तो नहीं हो रहा था। पर आज के समय कोई इतना वेल्ला भी नहीं होता की पोस्ट ऑफिस जाये अन्तर्देशी खरीदे चिट्ठी लिखे फिर पोस्ट करे। हो न हो कोई जेनुअन फैन ही था। शायद मेरी कवितायेँ और कहानियां सच में किसी के दिल में घर कर रहीं थीं। पास के पोस्ट ऑफिस का पता लगाया, अन्तर्देशी खरीदा और उनको एक शुभकामनायों भरी चिट्ठी भेज दी। चिट्ठी भेजने के बाद बड़ा अच्छा महसूस कर रहा था।

 

फिर मेरे और उस पोस्ट बॉक्स नंबर 1 9 8 2 के बीच चिट्ठी का आवागवन निरंतर जारी रहा। उन्होंने अपने बारे में बहुत कुछ बताया पर सब कुछ नहीं। इन चिट्ठियों में, मैं अपनी झलक देख रहा था और मेरा फैन खुद को। हमारे बीच एक अलग सा कन्नेक्शन हो गया था। हर दो हफ्ते में एक चिट्ठी मुझे मिलती, एक मेरे फैन को। कोई 1 साल हो गया था और चिट्ठियों की रवानगी जारी थी।

 

पर इस बार क्या हुआ.? तकरीबन 2 महीने हो गए थे अभी तक कोई चिट्ठी नहीं आयी थी। मैं चिंता में था, इंतज़ार में था, फिक्र भी थी, और बेचैनी भी, की आखिर क्या हुआ होगा? तभी डोर बैल बजी "खरे साहब हैं" वही बूढ़े हो चले पोस्ट ऑफिस के एक बुजुर्ग पोस्ट मैन, जो मेरे लिए हर वार वो मैजिकल चिट्ठी लेकर आते थे।

 

मैं एक पल भी नहीं रुका और वही दरवाजे पे चिट्ठी खोली और पड़ने लगा।

 

श्री मान कसक जी,

 

बहुत दिनों से आपको पत्र नहीं लिखा उसके लिए माफ़ी चाहता हूँ, थोड़ा सा घर के काम काज में व्यस्त हो गया था क्योकि अब अकेला जो रहता हूँ। लड़कियों की शादी हो चुकी है सो वो अपने अपने घर चली गयी और लड़कों ने शादी करके अपना घर बसा लिया हैं। सब अपनी अपनी जिंदगी में खुश है और मैं अपनी जिंदगी में खुश था कुछ सालों पहले तक, जब तक मेरा पहला और आखिरी प्यार मेरे साथ था मेरी पत्नी, हलाकि हमारे बीच हर समय हिंदुस्तान और पाकिस्तान का युद्ध छिड़ा रहता था पर हम साम को बॉर्डर नुमा किचिन में साथ बैठकर चाय भी पीते थे। अभी 1 साल पहले ही वो मुझे छोड़कर गयी है। अच्छा मैं भी कहाँ अपनी व्यथा आपके सामने ले के बैठ गया, छोड़िये ये सब। आज आपको 2 महीने के बाद फिर से सुना तो एक दोस्त की याद आगयी, उसकी आवाज भी बिलकुल आपके जैसी ही है, और एक कमाल की बात बताऊँ वो भी एक कवि है और दिल्ली में ही रहता है। मैं उसे भी सुनता हूँ और आपको भी, बिलकुल एक जैसी आवाज। आप सायद उन्हें जानते होंगे। आपसे तो चिट्ठियों के माध्यम से बात हो जाती है पर उनसे नहीं होती। शायद वो अपने पुराने दोस्त को भूल गए होंगे पर मैं नहीं भूला। अगर कहीं किसी महफ़िल में वो कभी आपको टकरा जाएं तो बस उनसे इतना भर कह देना कि आपका 80 साल का दोस्त आपको बहुत याद करता है, उनको कह देना कि वो भी कभी कोई चिट्ठी लिख दें। उसका नाम भी अमित खरे ही है और कसक के नाम से ही लिखते हैं। बैसे तो मेरा बेटा है पर बेटे के बढ़कर दोस्त है। कसक से तो बात हो जाती है पर अपने दोस्त से, अपने बेटे से बात नहीं हो पाती, बहुत व्यस्त रहता है वो। उनसे कहियेगा की थोड़ा सा समय निकाल ले, क्या पता फिर मेरे पास समय न बचे। आपके पत्र की प्रतीक्षा में, आपकी प्रतीक्षा में।

 

आपका

पोस्ट बॉक्स नंबर 1982 (मेरा बर्थ ईयर)

 


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