Thursday, February 11, 2021

अजी सुनती हो, तुम्हारे बिना मैं आधा हूँ ।

 


अजी सुनती हो, तुम्हारे बिना मैं आधा हूँ,


तुमसे थोड़ा कम, खुद से थोड़ा ज्यादा हूँ। 

तूँ हकीकत है और मैं ख्वाब थोड़ा ज्यादा हूँ।

तूँ सुरीली ग़ज़ल हैं और मैं ख्याल थोड़ा ज्यादा हूँ। 

हाँ, तुम्हारे बिना मैं आधा हूँ।    


जैसे सीता के बिना राम, राधा के बिना श्याम,

पैगाम बिना चिट्ठी, और पानी बिना मिट्टी। 

तुन मेरा अल्लढ़पन, मैं तेरी मर्यादा हूँ।  

हाँ, तुम्हारे बिना मैं आधा हूँ।  


जैसे मेहमान बिना मकान, ग्राहक बिना दुकान,

माँ के बिना रोटी, और माला बिना मोती। 

तुम मेरा रसदार व्यंजन, मैं तेरा भोजन सादा हूँ। 

हाँ, तुम्हारे बिना मैं आधा हूँ।  


जैसे गोरी के बिना गांव, मांझी के बिना नाव,

आँचल के बिना छाव, और पाजेब के बिना पांव। 

तूँ मेरा श्रृंगार सजीला, मैं तेरा काजल काला हूँ। 

हाँ, तुम्हारे बिना मैं आधा हूँ।  


जैसे झील बिना पानी, ज्ञान के बिना ज्ञानी,

रंग बिना पेशानी, और नानी बिना कहानी। 

तूँ मेरी मंजिल हैं और मैं सफर थोड़ा ज्यादा हूँ। 

हाँ, तुम्हारे बिना मैं आधा हूँ।  


तूँ दुनियाँ है मैं ज़र्रा हूँ, तूँ बदलाब है मैं ढर्रा हूँ 

तूँ खेल है मैं खिलाडी हूँ, तूँ परिपूर्ण है मैं अनाड़ी हूँ। 

तूँ पूरी सतरंज है मैं तो बस एक प्यादा हूँ। 

हाँ, तुम्हारे बिना मैं आधा हूँ।   


अजी सुनती हो, तुम्हारे बिना मैं आधा हूँ,

तुमसे थोड़ा कम, खुद से थोड़ा ज्यादा हूँ। 

तूँ हकीकत है और मैं ख्वाब थोड़ा ज्यादा हूँ।

तूँ सुरीली ग़ज़ल हैं और मैं ख्याल थोड़ा ज्यादा हूँ। 

हाँ, तुम्हारे बिना मैं आधा हूँ।   


अमित बृज किशोर खरे 'कसक'



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