Thursday, June 27, 2013
मेरी कहानी (पार्ट - 5) - "जोगेश्वरी"
Sunday, June 16, 2013
मेरी कहानी (पार्ट - 4) - "स्कूल कि टाट फट्टी"
Saturday, June 15, 2013
मेरी कहानी (पार्ट - 3) ------ मेरी आरज़ू....!!!!!
शुबहा के 9 बज चुके थे और मैंने अभी तक अपना बिस्तर नहीं छोड़ा था, देर रात
तक गुफ्तगू जो की थी। नीचे से आवाज़ आई. "सुबह हो गई नबाब साहब, नीचे आजायो, और
नास्ते के ऊपर कृपा करो।"
ये मेरी छोटी बहन गौरी की आवाज़ थी। मेरी जिन्दगी में पापा के बाद गौरी ही सबसे
प्यारी थी। मां तो कब का हमें छोड़ के जा चुकी थी, वो भी थक चुकी थी अपनी छोटी बहू
का इंतजार करते करते। जब तक जिन्दा थी तो रोज मुझसे कहती के "शादी कर ले"
"शादी कर ले", पर मैं शायद किसी और के इंतजार में था।
मैं प्रिया का इंतजार कर रहा था, उसी से रात भर बात किया करता, उसके बारे में
सोच सोच कर बेबजाह भी मुस्कुरा देता, सारे घर वालों को मेरी मुस्कराहट का राज पता था।
और सब खुश भी थे कि मैं प्यार में है। सब को पता था कि प्रिया कौन है, और सबको वो पसंद
भी बहुत थी। पर मुझसे इस बारे में बात करे कौन? "आखिर बिल्ली के गले में घंटी
बांधे तो बांधे कौन?"
प्रिया और मैं करीब तीन सालों से साथ थे, पहले हम दोनों को पता ही नहीं था के
आखिर ये साथ कहाँ तक और कब तक रहेगा। बस एक दुसरे का साथ अच्छा लगता था तो साथ थे।
फिर कुछ वक़्त साथ बिताते बिताते मुझको अहसास हो चूका था के ये प्यार है, पर प्रिया
शायद अभी भी नादान थी, वो कुछ ज्यादा ही वक़्त ले रही थी।
मैं और मेरा भाई उस रात पार्टी में थे जब प्रिया का SMS आया, बस हाल चाल पूँछा था, और मैंने भी उसी अंदाज मे जबाब दे दिया। कुछ
पल बाद ही प्रिया का दूसरा SMS आया, उसमे लिखा था "Do you love me?" मेरा
सारा का सारा नशा उतर गया। मुझे लगा के जैसे पी तो मैं रहा है और नशा उसे हो रहा है।
एक पल के लिए तो मैंने सोचा के प्रिया आज मजे लेने के मूड में है या फिर एक दो पैग
उसने भी लगा रखी है फिर एक पल बाद याद आया के वो तो पीती ही नहीं। मैंने फिर कुछ ना
सोचा और बोल दिया "Yes.!! I love you".
फिर जबाब आया
"Are you kidding?"
"No I am not, I am serious" मैंने आयो देखा ना तायो और तुरंत ही
जबाब दे दिया।
"Will talk to you later" एक अनसुलझा सा जबाब देकर प्रिया के SMS
आने बंद हो गये। और मैंने भी फिर कुछ नहीं कहा, अपना ड्रिंक ख़तम किया और बापस घर के
लिए रवाना हो गया।
करीब आधी रात को प्रिया का SMS आया, "I can't believe that you love
me" मैंने उस वक़्त जबाब देना कुछ सही नहीं समझा और सो गया।
दूसरे दिन हम दोनों ने दिन भर बातें कि, और मुझे लगा के मेरा सपना पूरा हो गया।
मैंने जिसे चाहा वो मुझे मिल गया था। सच बताऊ जेठ कि दुपहरी भी ढंडक देने लगी थी, चाँद
में उसकी तस्वीर साफ नजर आने लगी थी और हर एक हवा का झोंका उसकी महक अपने साथ लाने
लगा था।
वो अपनी हर छोटी से छोटी बात मुझे बताती, अपने स्कूल कि, अपने घर कि, अपने कॉलेज
कि, हर बात और मैं उन्हें बड़े प्यार से सुनता था। उसने अपनी हर एक कहानी को दसो बार
दुहराया होगा पर हर बार मुझे उसकी बही पुरानी कहानी नई सी लगती थी। मैं, उसकी कहानी
नहीं, उसकी आवाज़ सुनता था, उसकी चहकती सी आवाज कानों मै एक मीठा रस घोलती थी।
पर ये सब बातें शायद कुछ पल कि ही मेहमान थी। मेरे घर पे शादी कि बातें चल रही
थी, हालाकि मेरी मां इसका इंतजार करते करते अलविदा कह चुकी थी, पर अब मेरे पापा को
मेरी शादी का बेसब्री से इंतजार था।
मैंने कई बार उससे शादी को लेकर बात कि, और उसे हर वक़्त, कुछ और वक़्त कि जरूरत
थी, हर बार वो वक़्त ही मांगती, और हर बार मैं उसका इंतजार करता। मेरे और प्रिया के
बारे में अब घर में बातें भी बनने लगीं थी। प्रिया जितनी घर में पसंद हुआ करती थी,
अब धीरे धीरे घर वालों कि नज़रों से उतरती जा रही थी, हर एक कि जुबां पर सिर्फ एक ही
सबाल था कि आखिर वो लड़की शादी क्यों नहीं कर रही है, कोई कहता के वो बस टाइम पास कर
रही है तो कोई कहता कि उसे करनी नहीं है, जितने मुह उतनी बातें. पर सच्चाई तो सिर्फ
मैं जानता था, एक एसी सच्चाई जो मैंने किसी को नहीं बताई थी।
मैंने प्रिया से इस बारे में फिर से बात कि, और घर कि सारी बातें बताई।
"तुम थोडा और इंतजार कर सकते हो मेरे लिए?" उसने बड़े प्यार और अधिकार
से मुझसे कहा ।
"हाँ कर सकता हूँ, पर कब तक? घर में अब हमारा मजाक बनने लगा है, मैं अपने
घर वालों को और परेशान नहीं कर सकता।
"बस एक महीने का और वक़्त दे दो मुझे, इतना बड़ा फैसला लेने से पहले अपने
आप को तैयार भी करना पड़ेगा ना"
"ठीक है अगले महीने मेरा जन्मदिन है, उसी दिन तक का वक़्त है तुम्हारे
पास।" मैंने बड़ी मजबूरी में प्रिया को एक महीने की मोहलत और दे दी थी, पर शायद
मुझे ये वक़्त नहीं देना चाहिए था।
फिर हर रोज हम बातें करते और मैं सोचता कि उसे याद दिला दूँ कि एक दिन और निकल
गया, पर मन ही मन ये सोच के रह जाता के कहीं येसा कह के मैं उसपर किसी तरह का दवाव
तो नहीं डाल रहा, और फिर कुछ ना कहता। कुछ दिन और निकल गये येसे ही।
और एक दिन उसने मुझसे कहा कि वो शादी कर चुकी है, और अब वो प्रिया राज बजाज
हो चुकी है। हालाकि उसने ये बात मुझे पहले ही बता रखी थी कि, एक लड़का उसे दुनिया मै
सबसे ज्यादा प्यार करता है, और वो भी उसे चाहती है। पर मेरे प्यार कि आंधी में वो अपने
आप को रोक ना सकी और बह गई। मुझे इस बात का अहसास था कि मैं उस लड़की से प्यार कर रहा
हूँ जो उसकी कभी हो ही नहीं सकती, पर फिर भी, "सावन के अंधे को हरा हरा ही दीखता
है", प्यार तो प्यार है बस हो गया था। और सोचने लगा कि शायद वो मिल जाएगी, और
इस शायद में, मैंने शायद पूरी ज़िन्दगी जी ली थी।
किसी ने ठीक ही कहा है जब जिन्दगी जीने कि बात आये तो उसके साथ जियो जो तुम्हे
प्यार करता हो, ना कि उसके साथ जिसे तुम चाहो। प्रिया ने उसे चुना जो उसे सबसे ज्यादा
प्यार करता था, वो प्यार में थी और वो बिलकुल सही थी। जो प्यार में होते हैं वो बिलकुल
सही ही होते हैं। शायद मेरा प्यार उस इंसान के सामने बौना था।
मैं टूटता जा रहा था, नाराज़ हो रहा था अपनी जिन्दगी से, पर प्रिया अब भी मुझसे
कहती थी के वो मेरे साथ है, ये कैसा साथ? वो अब भी नहीं जान पा रही थी कि अब सब बदल
गया है, वो शादी के एक पवित्र बंधन में बंध चुकी है। वो किसी और कि हो चुकी है हमेसा
के लिए।
मुझे उसको दिए हुए वक़्त का खामियाजा मिल चूका था, और अब मैं उस रास्ते से हट
चूका था। पर प्रिया अब भी मेरे रग रग में समायी थी, घर के हर कोने में वो'ही दिखती
थी। मुझे उसकी हर एक बात याद थी, उसकी वो सारी कहानियाँ, जो उसने दसो बार सुनाई थी,
मुँह - जुबानी याद थी मुझे।
मेरी बहन गौरी जो मुझे सबसे ज्यादा समझती थी, वो भी समझ चुकी थी के अब कुछ नहीं
बचा हम दोनों के बीच, तो बहुत बार चिल्लाई कि छोडो उसे और जो लड़की घर वाले देख रहे
है, मिलो उससे सब ठीक हो जायेगा। और जंग में हारे हुये सिपाही ने आत्म-समर्पण कर दिया,
हाँ, मैंने शादी के लिए हाँ कह दी थी।
आरजू ये बही लड़की थी जिसको घर वालों ने चुना था, उससे एक या दो बार मिलने के
बाद मुझे उसकी आँखों में वही अहसास दिखाई दिया जो कभी प्रिया कि आँखों में उस लड़के
के लिए हुआ करता था, जिससे उसने शादी कि थी। वो अहसास था "सिर्फ मेरा" होने
का। आरजू कि आँखों में वही अहसास था कि मैं "सिर्फ उसका" हूँ और वो
"सिर्फ मेरी" । ये अहसास बहुत प्यारा और बहुत अपना लगा मुझे।
अब आरजू को अपनी आरजू बनाने का वक़्त आचुका था ।।
तो दोस्तों आखिर में बस दो बातें कहूंगा एक कि जो होता है अच्छे के लिए होता
है और दूसरा कभी अगर वो वक़्त मांगे तो देना मत।
अमित बृज किशोर खरे
"कसक"
Monday, April 22, 2013
मेरी कहानी पार्ट - 2 -- प्यार भरी मीठी सी चाय..
ट्रेन ललितपुर स्टेशन पहुची थी और एक चाय वाले के चिल्लाने पर मेरी हलकी सी नींद टूटी थी. थोड़ी ही देर बाद एक आदमी ब्रेक-फ़ास्ट, ब्रेक-फ़ास्ट कहते हुए सामने खड़ा होगया, और जैसे कह रहा हो, के उठ जाओ कुम्भकरण सुबहा सो गई. मैंने उसकी महनत को सराहा और ब्रेकफास्ट ले लिया, और फिर सो गया.
करीब 10 मिनट बाद फिर से बही चाय वाला आवाज़ लगाते हुए गुजरा. मैंने एक चाय ली और पीने लगा. वो चाय तो नहीं थी, शायद चाय का पानी था. या कहूँ के मुझे चाय की जगह, वो चाय वाली सुबहा ज्यादा पसंद थी. जिस सुबहा प्रिया अपने हाथों से मेरे लिए चाय बनती थी. बार बोलने पे के फीकी बनाना, वो मीठी ही बनती थी, बिलकुल अपने जैसी.
हर रोज़ बार बार सुबहा उसे जल्दी उठा देता था. और बार बार चाय बनाने को भी कहता था, वो छिड जाती थी, कभी तो बहुत जोरों से चिल्लाती थी. उसे सुबहा का सोना जो पसंद था. और मुझे चिढती हुए वो. कुछ अलग बात थी उसकी प्यार भरी मीठी चाय में.
खैर पिछली रात की ही तो बात लगती है, जब में स्टेशन आरहा था हैदराबाद के लिए ट्रेन पकड़ने के लिए, या कहूँ के जिंदगी की गाड़ी छोड़ने जा रहा था. या कहु के छूट रही थी, क्या हो रहा था, कुछ समझ में नहीं आरहा था.
प्रिया जो कल तक मेरी हुआ करती थी, आज प्रिया राजपूत हो गई थी, उसने शादी कर ली थी. उसने बताया था मुझे, के उसने शादी करली है, पर मुझे तो आज तक यकीन नहीं हो रहा है के उसने शादी कर ली है. अगर कर ली तो मैं अब उसकी जिंदगी का हिस्सा नहीं.
जब मैं उसकी जिन्दगी का कोई हिस्सा ही नहीं रहा तो फिर मुझे इतना गुनाहगार क्यों बना दिया गया. अभी तक समझ नहीं आया मुझे. वो शादी कर चुकी है तो अब मुझे क्या करना चाहिए..? क्या उसकी याद में पागल हो जाना चाहिए, पर नहीं हो सकता क्योकि उसी ने कहा था की अगर मैं न रहूँ तो गम न करना, दुनियां बहुत ख़ूबसूरत है उसे प्यार करना, तो पागल तो हो नहीं सकता.
येसा करता हूँ एक अँधेरे से कमरे में अपने आप को बंद कर लेता हूँ, और तनहा हो जाता हूँ, मैं येसा भी नहीं कर सकता क्योकि वो मुझे तनहा रहने नहीं देती. फिर सोचा के सायद अपने आप को मोहलत ही न दूँ के उसे याद कर सकूँ तो शायद सब ठीक हो जायेगा. पर सिर्फ सोचा ही था, होने वाला कुछ नहीं था. जिस आदमी को सिर्फ एक ही काम आता हो, और वो बही न करे, तो क्या कुछ ठीक होगा,? नहीं न..! मुझे सिर्फ एक ही काम आता था, उसे प्यार करना बस...
पर फिर भी कोसिस करने में क्या जाता है, किसी ने सच ही कहा है के "हिम्मत-ये-मरदा, तो मदद-ये-खुदा". बहुत सारे दोस्त बनाना सुरु कर दिया, चैट करनी सुरु कर दी, प्यार वाली बाते करने लगा, और फिर लडकियों की कमी भी नहीं थी मेरे पास, बस सब से बास्ता खतम कर दिया था जब से प्रिया मेरी जिन्दगी में आई थी. फिर से उन सबको खोज लिया. और उसे भुलाने के लिए उनसे नजदीकियां बढ़ने की सोची.
एक लड़की नीतू के साथ मै चैट कर रहा था. और वो चैट प्रिया भी देख रही थी, मेरी ID खोलकर. मै ये नहीं कह रहा की मेरी गलती नहीं थी. हा थी मेरी गलती के मै लड़कियों से फ्लर्ट कर रहा था. पर मैंने कभी किसी का दिल नहीं तोडा, कभी किसी को चोट नहीं पहुचाई, बस हँसता था हसाता था, फ्लर्ट करता था, और अगर लगा के कोई दिल पे ले रहा है, तो उसे बही रोक देता था के नहीं अब आगे नहीं. यही मेरी गलती थी.
प्रिया ने मेरी और नीतू की चैट देख ली और मेरे 3 साल के प्यार पे उसे इल्जाम लगते देर न लगी. कभी कभी तो ये लगता है के ये लड़कियां हर वक़्त सिर्फ मौके की तलाश मै होती है की कब मौका मिले और दूसरे आदमी को नीचा दिखा सके. और मैंने उस लड़की से तब चैट की जब प्रिया किसी और की हो चुकी थी, पर फिर भी उसे बुरा लगा, लगाना भी चाहिए के अभी तो एक दिन ही हुआ है इस लड़के को तो पागल हो जाना चाहिए था, बावरा होके गलियों मै घूमना चाहिए था, आखिर दूसरे दिन ही इसे दूसरी कैसे मिल गई..... बुरा तो लगाना था.
फिर लड़कियां एक बात का इतना बड़ा पोस्टमार्टम भी करती है, की पूछो ही मत. दिमाग मै कई सवाल, के एक दिन मै कोई लड़की एसे कैसे बात कर सकती है.? उसने येसा क्यों कहा.? उसने बैसे क्यों कहा.? जरूर पहले भी बात करते होंगे.? और भी पता नहीं क्या क्या..
खैर उसने मुझे बेबफा करार दे दिया... मुझे अभी भी समझ नहीं आया की आखिर बफा किसने की....
फिर उसी दिन मैंने उसे आखिरी सन्देश भेजा
"मैं बेबफा ही सही, पर प्यार सिर्फ तुमसे करता हूँ. पर अब तुम मुझे कभी नहीं पा पाओगी मैंने अपना चैटिंग साईट बंद कर दिया है. "ना रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी"
और अब मैं एक दूसरे सहर मै पहुचने वाला हूँ, और जब बापिश इस सहर मैं आऊंगा तो कोई दूसरी ही कसक लेके....
अमित बी. के. खरे
"कसक"
Tuesday, April 9, 2013
सुबहा सुबहा एक हलकी सी दस्तक....!!!!
दरवाजा खोला, देखा के तुम आये थे..
बैसे ही जैसे हर रोज,,
मेरे सपनों में आते थे....
मैंने कभी कहा नहीं पर,,
रोज़ मुझे जिंदगी सिखाते थे....
पर आज शायद आने की,
बजह कुछ और थी....
तुम जो दरवाजे पे थी,,,
मेरी मुहब्बत नहीं कोई और थी...
तुम आई थी मुझे बताने,
की अब तूँ मेरी नहीं है....
तुम आई थी मुझे बताने,
की मेरी जिन्दगी अब उतनी सुनहरी नहीं है....
आँखे पूरी तरहा से खुलीं भी नहीं थीं,
के दिल ने धड़कना बंद कर दिया था...
और आज आखिरी बार फिर,
तुम मुझे अपना बनाकर पराया बना गयी...!!
और जाते जाते मेरे घर को,
फिर से मकान बना गई...!!!!
अमित बृज किशोर खरे
"कसक"
Sunday, April 7, 2013
मैं इंसान हूँ, मुझे इंसान ही रहने दो....!!!!
मत छेड़ो मेरे
रुके हुए तार,,
मत करो रोशन मेरी,
बुझी हुयी मज़ार...
मेरा अँधेरा ही भला है,,
तुम अपनी ये रोशनी रहने दो....!!!!
मैं इंसान हूँ, मुझे इंसान ही रहने दो....!!!!
अब तुम्हारी वफ़ा से,
एतबार उठ चूका है..
प्यार का तूफान दिल में,
रुक चूका है..
अब प्यार से डरने लगा हूँ,,,
तुम अपना ये इकरार रहने दो....!!!!
मैं इंसान हूँ, मुझे इंसान ही रहने दो....!!!!
अमित बृज किशोर खरे
"कसक"
Saturday, April 6, 2013
मेरी कहानी (पार्ट - 1) बस नम्बर 522
आज बस ड्राईवर भी शायद घर जाने की जल्दी मे लग रहा था तभी तो ऑफिस से घर तक का रास्ता डेढ़ घंटे की बजाय 45 मिनिट्स मे ही तय कर लिया. मैं बस में बैठा शीशे के बाहर लोगों को इस शहर की भागमभाग भरी जिन्दगी में उदाश और निराश, भागता हुआ देख रहा था.
ये 522 नम्बर बस का रूट भी बड़ा अजीब है ये सपनो की उस दुनिया ले जाती है जिसमे हम जैसे लोग रोज़ रंग भरके दूर आकास में निकल जाते है पर कुछ देर बाद उसी बस्ताबिकता की जमीन पे आगिरते है.
मै के. जी. मार्ग से बैठता हूँ रोज, सी. पी. के नए नए रंग देखता हुआ इंडिया गेट पंहुचा जहाँ कोई पिता अपने बच्चे को कंधे के बिठाये हुए उसे मौषम का मिजाज़ बता रहा था. पर उनका नन्हा सा शैतान तो कुलकी के मजे में मस्त था.
जैसे कभी मैं पापा के साथ उनके ऑफिस चला जाया करता था. पापा पोस्ट ऑफिस में पोस्ट मास्टर हुआ करते थे, वो अपने ऑफिस के काम में मस्त रहते और में सारे ऑफिस को अपना खेल का मैदान बना लिया करता था. जब भी जाता था टॉफ़ीयां से जेब भर के लाता था जिनसे अगले एक हफ्ते का काम चलता था. फिर जब टॉफ़ीयां ख़तम हो जाती तो फिर से जिद करता ऑफिस चलने के लिए.
वो टॉफ़ीयां आज भी याद आतीं हैं, उनमे जो मिठाश थी वो अब बाज़ार से खरीद के खाने मे नहीं है, वो टॉफ़ीयां नहीं थीं सुनहरी सी रंगीन कवर में लिपटा हुआ ढेर सारा प्यार और दुलार था, जो अब इस शहर मे नहीं.
बस इंडिया गेट से निकल के खान मार्केट की रेड लाइट पे रुकी थी, एक बहुत प्यारा सा प्रेमी जोड़ा बस के सामने से गुजरा और मार्केट में कही खो गया, शायद ये शहर इन्ही के लिए बना है. 8 साल गुजारने के बाद भी न तो इस शहर ने मुझे अपनाया और न ही मे इसे अपना बना पाया,. मेरा फ्लेट आज भी मेरा कमरा है मेरा घर वो नहीं बन सका.
बस लोधी रोड होते हुए जवाहर लाल स्टेडियम पहुची जहाँ से कुछ खिलाडी भी चढ़ गए शायद होकी खेलते होंगे वो. बैसे से ही मैं क्रिकेट का दीवाना रहा हूँ, बच्मन मे सपना भी था इंडिया की तरफ से खेलूँगा, बैसे इंडिया में हर दूसरे लड़के का यही सपना होता है, मैं सचिन तेंदुलकर बनना चाहता था, हालाकि अस्लियत में विकेट कीपरिंग किया करता था. उन्हें देखा और बस क्या था सपनो के समुन्दर मे गोता लगाने मे देर न लगी.
वो हलकी हलकी सर्दियाँ सुरु ही हुई थी और हमारे गाँव के परान के मैदान पे हमारे गाँव रक्सा की टीम और झाँसी शहर की स्टार टीम में सीरिज़ का तीसरा और आखिरी मैच चल रहा था. हम लोग बेटिंग कर चुके थे और मैंने कुछ अच्छा नहीं खेला था, पर फिर भी ठीक ठाक स्कोर कर लिया था.
स्टार टीम खेल रही थी और जीतने के लिए कुल 16 रन चाहिए थे, हमारे भी स्टार बोलर गिन्नी रजा और दीपक गुप्ता मोर्चा सम्हाले थे. पर शायद वो मेरे लिए अच्छा दिन नहीं था.
आखिरी ओवर था, गिन्नी अटैक पे था, और जीतने के लिए कुल 9 रन, गिन्नी के ओवर मे कोई 6 बौल्स पे 6 रन बना ले तो हम उसे तीस मारखा समझते थे वो धार थी उसकी बोलिंग मे. आखरी गेंद और जीतने के लिए सिर्फ 4 रन, हम मैच जीतकर सीरिज़ जितने की कगार पे थे, तभी गेंद ने मेरे दस्तानों से लुका-छुपी खेली और थर्ड मेन से होते हुए बॉर्डर पर कर गई. हम मैच हर चुके थे और कप्तान गिन्नी राजा के मुखमंडल से जो प्रबचन सुने थे और कोच गोविन्द भाईसाहब की जो लातें खायी थी आज भी नहीं भूला उन्हें, वो लम्हे आज भी कहीं सम्हाल के रखे है मैंने.
अब मेरा सपनों का बगुला उतरने की फ़िराक मे था, या यूँ कहे की 522 बापिश मुझे मेरी असल जिंदगी मे ले जाने वाली थे. खानपुर, जहाँ मेरा कामरा है.
और बस से उतरने के बाद, उन टूटी गलियों मे अपने आप को खोज सा रहा था में.
Monday, March 11, 2013
एक अजीब सा अहसास है..!!
एक अजीब सा अहसास है..!
सायद कोई दूर है,
या सायद कोई पास है..!!
कुछ अनछुये से सवाल हैं,
या जाने-पहचाने जबाब हैं..!
कोई पास हो के दूर है,,
तो कोई दूर हो के पास है..!!
एक अजीब सा अहसास है,
एक अजीब सा अहसास है..!
एक हलकी सी चुभन है,
और शरीर में अकड़न है..!
दिमाग तो सायद जिंदा है,,
पर दिल में सायद जकड़न है..!!
एक अजीब सी तड़पन है,
एक अजीब सी तड़पन है..!!
दिल करता है रोने का,
पर आंसू भी नाराज़ हें..!
एक सहमी-सहमी आस है,,
एक बुझी-बुझी सी प्यास है..!!
एक अजीब सा अहसास है,
एक अजीब सा अहसास है..!
अमित बी. के. खरे
"कसक"