सुबहा सुबहा एक हलकी सी दस्तक पे,,
दरवाजा खोला, देखा के तुम आये थे..
बैसे ही जैसे हर रोज,,
मेरे सपनों में आते थे....
मैंने कभी कहा नहीं पर,,
रोज़ मुझे जिंदगी सिखाते थे....
पर आज शायद आने की,
बजह कुछ और थी....
तुम जो दरवाजे पे थी,,,
मेरी मुहब्बत नहीं कोई और थी...
तुम आई थी मुझे बताने,
की अब तूँ मेरी नहीं है....
तुम आई थी मुझे बताने,
की मेरी जिन्दगी अब उतनी सुनहरी नहीं है....
आँखे पूरी तरहा से खुलीं भी नहीं थीं,
के दिल ने धड़कना बंद कर दिया था...
और आज आखिरी बार फिर,
तुम मुझे अपना बनाकर पराया बना गयी...!!
और जाते जाते मेरे घर को,
फिर से मकान बना गई...!!!!
अमित बृज किशोर खरे
"कसक"
दरवाजा खोला, देखा के तुम आये थे..
बैसे ही जैसे हर रोज,,
मेरे सपनों में आते थे....
मैंने कभी कहा नहीं पर,,
रोज़ मुझे जिंदगी सिखाते थे....
पर आज शायद आने की,
बजह कुछ और थी....
तुम जो दरवाजे पे थी,,,
मेरी मुहब्बत नहीं कोई और थी...
तुम आई थी मुझे बताने,
की अब तूँ मेरी नहीं है....
तुम आई थी मुझे बताने,
की मेरी जिन्दगी अब उतनी सुनहरी नहीं है....
आँखे पूरी तरहा से खुलीं भी नहीं थीं,
के दिल ने धड़कना बंद कर दिया था...
और आज आखिरी बार फिर,
तुम मुझे अपना बनाकर पराया बना गयी...!!
और जाते जाते मेरे घर को,
फिर से मकान बना गई...!!!!
अमित बृज किशोर खरे
"कसक"
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