Saturday, June 15, 2013

मेरी कहानी (पार्ट - 3) ------ मेरी आरज़ू....!!!!!



शुबहा के 9 बज चुके थे और मैंने अभी तक अपना बिस्तर नहीं छोड़ा था, देर रात तक गुफ्तगू जो की थी। नीचे से आवाज़ आई. "सुबह हो गई नबाब साहब, नीचे आजायो, और नास्ते के ऊपर कृपा करो।"

 

ये मेरी छोटी बहन गौरी की आवाज़ थी। मेरी जिन्दगी में पापा के बाद गौरी ही सबसे प्यारी थी। मां तो कब का हमें छोड़ के जा चुकी थी, वो भी थक चुकी थी अपनी छोटी बहू का इंतजार करते करते। जब तक जिन्दा थी तो रोज मुझसे कहती के "शादी कर ले" "शादी कर ले", पर मैं शायद किसी और के इंतजार में था।

 

मैं प्रिया का इंतजार कर रहा था, उसी से रात भर बात किया करता, उसके बारे में सोच सोच कर बेबजाह भी मुस्कुरा देता, सारे घर वालों को मेरी मुस्कराहट का राज पता था। और सब खुश भी थे कि मैं प्यार में है। सब को पता था कि प्रिया कौन है, और सबको वो पसंद भी बहुत थी। पर मुझसे इस बारे में बात करे कौन? "आखिर बिल्ली के गले में घंटी बांधे तो बांधे कौन?"

 

प्रिया और मैं करीब तीन सालों से साथ थे, पहले हम दोनों को पता ही नहीं था के आखिर ये साथ कहाँ तक और कब तक रहेगा। बस एक दुसरे का साथ अच्छा लगता था तो साथ थे। फिर कुछ वक़्त साथ बिताते बिताते मुझको अहसास हो चूका था के ये प्यार है, पर प्रिया शायद अभी भी नादान थी, वो कुछ ज्यादा ही वक़्त ले रही थी।

 

मैं और मेरा भाई उस रात पार्टी में थे जब प्रिया का SMS आया, बस हाल चाल पूँछा  था, और मैंने भी उसी अंदाज मे जबाब दे दिया। कुछ पल बाद ही प्रिया का दूसरा SMS आया, उसमे लिखा था "Do you love me?" मेरा सारा का सारा नशा उतर गया। मुझे लगा के जैसे पी तो मैं रहा है और नशा उसे हो रहा है। एक पल के लिए तो मैंने सोचा के प्रिया आज मजे लेने के मूड में है या फिर एक दो पैग उसने भी लगा रखी है फिर एक पल बाद याद आया के वो तो पीती ही नहीं। मैंने फिर कुछ ना सोचा और बोल दिया "Yes.!! I love you".

 

फिर जबाब आया

"Are you kidding?"

"No I am not, I am serious" मैंने आयो देखा ना तायो और तुरंत ही जबाब दे दिया।

"Will talk to you later" एक अनसुलझा सा जबाब देकर प्रिया के SMS आने बंद हो गये। और मैंने भी फिर कुछ नहीं कहा, अपना ड्रिंक ख़तम किया और बापस घर के लिए रवाना हो गया।

करीब आधी रात को प्रिया का SMS आया, "I can't believe that you love me" मैंने उस वक़्त जबाब देना कुछ सही नहीं समझा और सो गया।

 

दूसरे दिन हम दोनों ने दिन भर बातें कि, और मुझे लगा के मेरा सपना पूरा हो गया। मैंने जिसे चाहा वो मुझे मिल गया था। सच बताऊ जेठ कि दुपहरी भी ढंडक देने लगी थी, चाँद में उसकी तस्वीर साफ नजर आने लगी थी और हर एक हवा का झोंका उसकी महक अपने साथ लाने लगा था।

 

वो अपनी हर छोटी से छोटी बात मुझे बताती, अपने स्कूल कि, अपने घर कि, अपने कॉलेज कि, हर बात और मैं उन्हें बड़े प्यार से सुनता था। उसने अपनी हर एक कहानी को दसो बार दुहराया होगा पर हर बार मुझे उसकी बही पुरानी कहानी नई सी लगती थी। मैं, उसकी कहानी नहीं, उसकी आवाज़ सुनता था, उसकी चहकती सी आवाज कानों मै एक मीठा रस घोलती थी।

 

पर ये सब बातें शायद कुछ पल कि ही मेहमान थी। मेरे घर पे शादी कि बातें चल रही थी, हालाकि मेरी मां इसका इंतजार करते करते अलविदा कह चुकी थी, पर अब मेरे पापा को मेरी शादी का बेसब्री से इंतजार था।

 

मैंने कई बार उससे शादी को लेकर बात कि, और उसे हर वक़्त, कुछ और वक़्त कि जरूरत थी, हर बार वो वक़्त ही मांगती, और हर बार मैं उसका इंतजार करता। मेरे और प्रिया के बारे में अब घर में बातें भी बनने लगीं थी। प्रिया जितनी घर में पसंद हुआ करती थी, अब धीरे धीरे घर वालों कि नज़रों से उतरती जा रही थी, हर एक कि जुबां पर सिर्फ एक ही सबाल था कि आखिर वो लड़की शादी क्यों नहीं कर रही है, कोई कहता के वो बस टाइम पास कर रही है तो कोई कहता कि उसे करनी नहीं है, जितने मुह उतनी बातें. पर सच्चाई तो सिर्फ मैं जानता था, एक एसी सच्चाई जो मैंने किसी को नहीं बताई थी।

 

मैंने प्रिया से इस बारे में फिर से बात कि, और घर कि सारी बातें बताई।  

"तुम थोडा और इंतजार कर सकते हो मेरे लिए?" उसने बड़े प्यार और अधिकार से मुझसे कहा ।

"हाँ कर सकता हूँ, पर कब तक? घर में अब हमारा मजाक बनने लगा है, मैं अपने घर वालों को और परेशान नहीं कर सकता।

"बस एक महीने का और वक़्त दे दो मुझे, इतना बड़ा फैसला लेने से पहले अपने आप को तैयार भी करना पड़ेगा ना"

"ठीक है अगले महीने मेरा जन्मदिन है, उसी दिन तक का वक़्त है तुम्हारे पास।" मैंने बड़ी मजबूरी में प्रिया को एक महीने की मोहलत और दे दी थी, पर शायद मुझे ये वक़्त नहीं देना चाहिए था।

 

फिर हर रोज हम बातें करते और मैं सोचता कि उसे याद दिला दूँ कि एक दिन और निकल गया, पर मन ही मन ये सोच के रह जाता के कहीं येसा कह के मैं उसपर किसी तरह का दवाव तो नहीं डाल रहा, और फिर कुछ ना कहता। कुछ दिन और निकल गये येसे ही।

 

और एक दिन उसने मुझसे कहा कि वो शादी कर चुकी है, और अब वो प्रिया राज बजाज हो चुकी है। हालाकि उसने ये बात मुझे पहले ही बता रखी थी कि, एक लड़का उसे दुनिया मै सबसे ज्यादा प्यार करता है, और वो भी उसे चाहती है। पर मेरे प्यार कि आंधी में वो अपने आप को रोक ना सकी और बह गई। मुझे इस बात का अहसास था कि मैं उस लड़की से प्यार कर रहा हूँ जो उसकी कभी हो ही नहीं सकती, पर फिर भी, "सावन के अंधे को हरा हरा ही दीखता है", प्यार तो प्यार है बस हो गया था। और सोचने लगा कि शायद वो मिल जाएगी, और इस शायद में, मैंने शायद पूरी ज़िन्दगी जी ली थी।

 

किसी ने ठीक ही कहा है जब जिन्दगी जीने कि बात आये तो उसके साथ जियो जो तुम्हे प्यार करता हो, ना कि उसके साथ जिसे तुम चाहो। प्रिया ने उसे चुना जो उसे सबसे ज्यादा प्यार करता था, वो प्यार में थी और वो बिलकुल सही थी। जो प्यार में होते हैं वो बिलकुल सही ही होते हैं। शायद मेरा प्यार उस इंसान के सामने बौना था।

 

मैं टूटता जा रहा था, नाराज़ हो रहा था अपनी जिन्दगी से, पर प्रिया अब भी मुझसे कहती थी के वो मेरे साथ है, ये कैसा साथ? वो अब भी नहीं जान पा रही थी कि अब सब बदल गया है, वो शादी के एक पवित्र बंधन में बंध चुकी है। वो किसी और कि हो चुकी है हमेसा के लिए।

 

मुझे उसको दिए हुए वक़्त का खामियाजा मिल चूका था, और अब मैं उस रास्ते से हट चूका था। पर प्रिया अब भी मेरे रग रग में समायी थी, घर के हर कोने में वो'ही दिखती थी। मुझे उसकी हर एक बात याद थी, उसकी वो सारी कहानियाँ, जो उसने दसो बार सुनाई थी, मुँह - जुबानी याद थी मुझे।

 

मेरी बहन गौरी जो मुझे सबसे ज्यादा समझती थी, वो भी समझ चुकी थी के अब कुछ नहीं बचा हम दोनों के बीच, तो बहुत बार चिल्लाई कि छोडो उसे और जो लड़की घर वाले देख रहे है, मिलो उससे सब ठीक हो जायेगा। और जंग में हारे हुये सिपाही ने आत्म-समर्पण कर दिया, हाँ, मैंने शादी के लिए हाँ कह दी थी।

 

आरजू ये बही लड़की थी जिसको घर वालों ने चुना था, उससे एक या दो बार मिलने के बाद मुझे उसकी आँखों में वही अहसास दिखाई दिया जो कभी प्रिया कि आँखों में उस लड़के के लिए हुआ करता था, जिससे उसने शादी कि थी। वो अहसास था "सिर्फ मेरा" होने का। आरजू कि आँखों में वही अहसास था कि मैं "सिर्फ उसका" हूँ और वो "सिर्फ मेरी" । ये अहसास बहुत प्यारा और बहुत अपना लगा मुझे।

 

अब आरजू को अपनी आरजू बनाने का वक़्त आचुका था ।।

 

तो दोस्तों आखिर में बस दो बातें कहूंगा एक कि जो होता है अच्छे के लिए होता है और दूसरा कभी अगर वो वक़्त मांगे तो देना मत।

 

अमित बृज किशोर खरे

"कसक"

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