कभी किसी ऐसे रिश्ते में बंधे हो, जिसमें तुम पहली नहीं दूसरी पसंद होते हो। आपको पता होता है कि आखिर में आप अकेले ही रहोगे पर फिर भी उसे दिलों जान से चाहते हो।
मैं रहा हूँ, उस रिश्ते का अहसास कुछ खट्टा तो कुछ मीठा था। मैं उसे बेवफा नहीं कहूंगा क्योकि उसने दोनों के साथ बफा की, मुझे बताकर और उससे छिपाकर।
उस पल का अहसाह मेरे रोंगटे खड़े कर देता है जब मैं खुद उसे रकीब के पास जाने के लिए गाड़ी तक छोड़ने जाता था। गाड़ी निकलने के बाद भी मैं ना-जाने कितने घंटों यूँ ही बेबजह स्टेशन पर बैठा रहता था कि शायद फिल्मों की तरह कोई क्लीमेक्स होगा और वो आके कहेगी "कि चलो, घर चलो मैंने गाड़ी छोड़ दी"।
लोग पूंछते हैं कि ये प्यार क्या होता है,
शायद बेमतलब किसी को सब कुछ दे देना ही प्यार है,
उसकी खुसी के लिए उससे दूर जाना ही प्यार है।
दिल में चल रही उधेड़-बुन छुपाना ही प्यार हैं
और न चाहते हुए भी उसका होजाना ही प्यार है।
मैंने निभाया था वो रिश्ता, सिर्फ मैंने नहीं, हम दोनों ने निभाया था रिश्ता,
एक सुनहरा अहसास और कुछ खट्टी - मीठी यादें उस रिश्ते में समायी थी,
मैंने उसे जाना था, और वो भी मुझे अच्छे से समझ पायी थी।
जब तक साथ थे हम दोनों ने सारी कसमें निभाई थीं
ये जानते हुए भी कि वो मेरी नहीं, सिर्फ एक परछाई थी।
फिर कुछ सालों बाद हम रिश्ते से तो अलग हो गए,
पर एक बेनामी रिश्ते में बंध गए,
वो रिश्ता न तो प्यार था, न दोस्ती थी, न कोई और
पर आज भी जब कभी उससे बात होती है
हम घंटों बातें करते हैं बिना किसी मसले के, बिना किसी बात के बिना किसी रिश्ते के।
क्योकिं हम दोनों के बीच अब कोई रिश्ता ही नहीं,
कभी कभी दो लोगों के बीच कोई रिश्ता न होना भी एक रिश्ता होता है।
अमित बृज किशोर खरे "कसक"
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