तुकबंदी नहीं आती, दिल का हाल हम रखतें हैं,
तुम्हारे पास जिसका जबाब नहीं येसे सवाल हम रखतें हैं।
मैं क्या सुनाऊँ अपना हाल, तुम अपनी कहो,
शायर हूँ जनाब, जो तुझे छुये वो ख़याल हम रखतें हैं।।
मेरी मुस्कुराहटें तेरी, और तेरी आँखों का पानी हम रखतें हैं,
चलो ऐसा करो तुम जख्म दो मुझे,
और तुम्हारी चोटों पे मरहम हम रखतें हैं।।
तुम मौका-परस्ती का पैमाना, और एहतराम हम रखतें हैं,
कितनो ने तोड़े हैं तेरी बगिया से फूल,
तूं गिनती कर, उसका हिसाब हम रखतें हैं।।
क्या बेवफाई की टकसाल खोल रक्खी है, जो रोज नया रकीब मिलता है,
किससे कब कहाँ और कैसे शौंक पूरे हुए तेरे,
उस हर एक किस्से की खबर हम रखतें हैं।।
अब तो मन भर गया होगा तेरा, जिस्म की भूख से,
अब भी वक़्त है यही रुक जा कसक,
अब भी तेरे साथ चलने का जिगर हम रखतें हैं।।
अमित बृज किशोर खरे "कसक"
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