जो कहा था, अब तक किया क्यों नहीं ?
जो कहा था, अब तक किया क्यों नहीं ?
मेरा हाल अब तक लिया क्यों नहीं ?
तैयारी तो पूरी कर लि थी तुमने,
जहर देना था, अब तक दिया क्यों नहीं ?
वो बंदूकों की नोक पे बैठा है जनाब,
भरता का पेट अब तक भरा क्यों नहीं ?
वो जो आँख दिखता है बात - बात पे,
वो हितैषी अब तक डरा क्यों नहीं ?
डरती है वो कूचें से बाहर निकलने में,
हमारे अंदर का शैतान, अब तक मरा क्यों नहीं ?
वो जिसने कसमे खायीं थीं, साथ देने कि,
वो मेरी गली से अब तक गुजरा क्यों नहीं ?
तूने कहा था भरोसा देकर, कि मैं हूँ यहाँ,
जब आग लगी, तब तूँ रुका क्यों नहीं ?
फ़क़त चंद सिक्कों में बिक गया तेरा ईमान,
जब सौदागर आये, तब तूँ लड़ा क्यों नहीं ?
साजिशें बहुत हुयीं, आवाज़ दबाने की, पर दबी नहीं,
फिर दीवाने-खास से पुछा गया, 'कसक' डरा क्यों नहीं ?
अमित बृज किशोर खरे 'कसक'
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