ये मेरे अंतः के मानस मुझसे बात करो !
मन की अंधियारी गलियों में मेरे साथ चलो !!
सूरज भी ठंडा हो जाये, मुझमें येसी अगन जलाओ,
सागर की लहरें थम जाएँ, मुझमें येसी तरंग उठाओ !
अब तक कुछ भी हुआ नहीं है, कुछ तो आज करो !!
ये मेरे अंतः के मानस मुझसे बात करो !
देख लिया मैंने कुछ शायद, और कुछ शायद देख न पाया,
मन की अनंत गहराई में, खोजकर तुझको खोज न पाया !
भौतिकता के अंधियारों में प्रकाश अनुनाद करो !!
ये मेरे अंतः के मानस मुझसे बात करो !
सब तो कहते मन ही सब कुछ, मैं कहता कुछ और कहो,
आप तो मन के वस् में हैं, 'कसक' तभी मन वस् में कर लो !
मन के द्वार बंद कर दो, साक्षीभाव से काम करो
ये मेरे अंतः के मानस मुझसे बात करो !
मन की अंधियारी गलियों में मेरे साथ चलो !!
अमित बृज किशोर खरे "कसक"
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