Saturday, January 2, 2021

जहर देना था अब तक दिया क्यों नहीं। By Amit BK Khare "Kasak"

 


जो कहा था, अब तक किया क्यों नहीं ?


जो कहा था, अब तक किया क्यों नहीं ?

मेरा हाल अब तक लिया क्यों नहीं ?

तैयारी तो पूरी कर लि थी तुमने,

जहर देना था, अब तक दिया क्यों नहीं ? 


वो बंदूकों की नोक पे बैठा है जनाब,

भरता का पेट अब तक भरा क्यों नहीं ?


वो जो आँख दिखता है बात - बात पे,

वो हितैषी अब तक डरा क्यों नहीं ?


डरती है वो कूचें से बाहर निकलने में,

हमारे अंदर का शैतान, अब तक मरा क्यों नहीं ?


वो जिसने कसमे खायीं थीं, साथ देने कि,

वो मेरी गली से अब तक गुजरा क्यों नहीं ?


तूने कहा था भरोसा देकर, कि मैं हूँ यहाँ,

जब आग लगी, तब तूँ रुका क्यों नहीं ?


फ़क़त चंद सिक्कों में बिक गया तेरा ईमान,

जब सौदागर आये, तब तूँ लड़ा क्यों नहीं ?


साजिशें बहुत हुयीं, आवाज़ दबाने की, पर दबी नहीं,

फिर दीवाने-खास से पुछा गया, 'कसक' डरा क्यों नहीं ?


अमित बृज किशोर खरे 'कसक'



Friday, January 1, 2021

हाँ तुमसे बातें करनी हैं। - I love you my better Half.

This Poem is dedicated to my wife Arti

I love you so much, sweetheart.


तुमसे बातें करनी हैं, हाँ तुमसे बातें करनी हैं। 

जो बस जाएँ ज़हन में, उतर जाये नसों में, 

और पिघल जाये हालातों में, ऐसी मुलाकातें करनी हैं 

हाँ तुमसे बातें करनी हैं। 


तुम्हारी मुस्कुराहट से मेरी सुबहा होती है,

तुम्हारी पलकों पे मेरी शाम सोती है। 

न मेरीं, ना सिर्फ तेरीं, हमारीं हों, ऐसी हसीं रातें करनीं हैं, 

हाँ तुमसे बातें करनी हैं। 


तुम कहो तो मैं सुना करूँ, और मैं कहूं तो तुम समझा करो,

मैं नारी का सम्मान करूँ, तुम पुरुष की बिडम्बना समझा करो। 

तुझको मुझसे, मुझको तुझसे, बहुत शिकायतें करनी हैं। 

हाँ तुमसे बातें करनी हैं। 


हमारे रिश्ते ने मौसम के सारे पड़ाव देखें हैं,

थोड़े नरम, थोड़े गरम लम्हे, आँचल में समेटे हैं। 

जो डुबों दे हमें हमेसा के लिए, ऐसी बरसातें करनी हैं 

हाँ तुमसे बातें करनी हैं। 


लड़ना भी है तुमसे, तुम्हीं से प्यार करना है,

सायद कभी किया नहीं, फिर से इजहार करना है। 

जिनपर साथ चलूँ उम्र भर, ऐसे कई सफर की सुरुवातें करनी हैं 

हाँ तुमसे बातें करनी हैं।


तुम्हारे बिना मैं वैसा ही हूँ जैसे बिना पतवार की नाव,

जिसे बहाता था अपनी ही मर्जी के ज़माने का बहाव,

तुझमें मुझको रब मिला है बस अरदासें करनी हैं। 

हाँ तुमसे बातें करनी हैं।


अमित बृज किशोर खरे "कसक"




एक रिश्ता जिसका कोई नाम नहीं।

 


कभी किसी ऐसे रिश्ते में बंधे हो, जिसमें तुम पहली नहीं दूसरी पसंद होते हो। आपको पता होता है कि आखिर में आप अकेले ही रहोगे पर फिर भी उसे दिलों जान से चाहते हो। 


मैं रहा हूँ, उस रिश्ते का अहसास कुछ खट्टा तो कुछ मीठा था। मैं उसे बेवफा नहीं कहूंगा क्योकि उसने दोनों के साथ बफा की, मुझे बताकर और उससे छिपाकर। 


उस पल का अहसाह मेरे रोंगटे खड़े कर देता है जब मैं खुद उसे रकीब के पास जाने के लिए गाड़ी तक छोड़ने जाता था। गाड़ी निकलने के बाद भी मैं ना-जाने कितने घंटों यूँ ही बेबजह स्टेशन पर बैठा रहता था कि शायद फिल्मों की तरह कोई क्लीमेक्स होगा और वो आके कहेगी "कि चलो, घर चलो मैंने गाड़ी छोड़ दी"। 


लोग पूंछते हैं कि ये प्यार क्या होता है, 


शायद बेमतलब किसी को सब कुछ दे देना ही प्यार है, 

उसकी खुसी के लिए उससे दूर जाना ही प्यार है। 

दिल में चल रही उधेड़-बुन छुपाना ही प्यार हैं 

और न चाहते हुए भी उसका होजाना ही प्यार है।  


मैंने निभाया था वो रिश्ता, सिर्फ मैंने नहीं, हम दोनों ने निभाया था रिश्ता,


एक सुनहरा अहसास और कुछ खट्टी - मीठी यादें उस रिश्ते में समायी थी,

मैंने उसे जाना था, और वो भी मुझे अच्छे से समझ पायी थी। 

जब तक साथ थे हम दोनों ने सारी कसमें निभाई थीं 

ये जानते हुए भी कि वो मेरी नहीं, सिर्फ एक परछाई थी। 


फिर कुछ सालों बाद हम रिश्ते से तो अलग हो गए,

पर एक बेनामी रिश्ते में बंध गए,

वो रिश्ता न तो प्यार था, न दोस्ती थी, न कोई और 


पर आज भी जब कभी उससे बात होती है 

हम घंटों बातें करते हैं बिना किसी मसले के, बिना किसी बात के बिना किसी रिश्ते के। 


क्योकिं हम दोनों के बीच अब कोई रिश्ता ही नहीं, 

कभी कभी दो लोगों के बीच कोई रिश्ता न होना भी एक रिश्ता होता है। 


अमित बृज किशोर खरे "कसक"