Sunday, August 7, 2016

फिर कभी आऊंगा !!



कुछ आपकी सुनूंगा, कुछ अपनी सुनाऊंगा,
अभी वक़्त बहुत कम है, कल फिर कभी आऊंगा !
क्या हुआ जो आज छोड़ दिया तेरा दामन,
कल फिर नयी सुबह होगी, नया सूरज होगा,

कल फिर तेरे सामने ये सडी हुई सूरत ले आऊंगा !!

अमित बृज किशोर खरे “कसक”

Monday, August 1, 2016

कल बीता सो बीता !

कल बीता सो बीता !
आज सुबह का दिनकर देखो,
फूल मनोहर मधुकर देखो,
आज लिखो तुम नयी कविता !!

कल बीता सो बीता !!

आज प्यार में तन्हाई है,
दिलों में एक लंबी खायी हैं !
प्यार बना अब एक लतीफा !!
कल बीता सो बीता !!

आज नया आगाज़ करें हम,
आयो आज कुछ खास करें हम !
आज लिखें हम एक नयी गीता !!
कल बीता सो बीता !

गए बीत कई साल दसक 
कभी एक न हम हुए 'कसक' !
अब हो जायो युग बीता !!
कल बीता सो बीता !

कल बीता सो बीता !
कल बीता सो बीता !

अमित बृज किशोर खरे
"कसक"

ये मेरे अंतः के मानस मुझसे बात करो !


ये मेरे अंतः के मानस मुझसे बात करो !
मन की अंधियारी गलियों में मेरे साथ चलो !!

सूरज भी ठंडा हो जाये, मुझमें येसी अगन जलाओ,
सागर की लहरें थम जाएँ, मुझमें येसी तरंग उठाओ !
अब तक कुछ भी हुआ नहीं है, कुछ तो आज करो !!

ये मेरे अंतः के मानस मुझसे बात करो !

देख लिया मैंने कुछ शायद, और कुछ शायद देख न पाया,
मन की अनंत गहराई में, खोजकर तुझको खोज न पाया !
भौतिकता के अंधियारों में प्रकाश अनुनाद करो !!

ये मेरे अंतः के मानस मुझसे बात करो !

सब तो कहते मन ही सब कुछ, मैं कहता कुछ और कहो, 
आप तो मन के वस् में हैं, 'कसक' तभी मन वस् में कर लो !
मन के द्वार बंद कर दो, साक्षीभाव से काम करो 

ये मेरे अंतः के मानस मुझसे बात करो ! 
मन की अंधियारी गलियों में मेरे साथ चलो !!

अमित बृज किशोर खरे "कसक"