वो दिल के पास थी, पर नज़रों से बहुत दूर थी ।
मै यूपी का छोरा, वो पंजाबी अनुभा कपूर थी।।
ख्यालात अलग, जज्वात अलग, वो दूरी की मुलाकात अलग,
बिन देखी, बिन समझी, हम दोनों में मुहब्बत भरपूर थी।
मै यूपी का छोरा, वो पंजाबी अनुभा कपूर थी।।
वो फर्राटे की अंग्रेजी थी, मेरी भाषा बुन्देली थी,
मैं बेढंगी सा रांझा था, वो स्वर्ग से उतरी हूर थी।
मै यूपी का छोरा, वो पंजाबी अनुभा कपूर थी।।
वो सुबहा की गर्म चाय थी, लालिमा चहरे पे लगाए थी,
वो कातिल थी, रहनुमा थी, वो नूर थी और मेरा गुरूर थी।
मै यूपी का छोरा, वो पंजाबी अनुभा कपूर थी।।
मैं बिखरा हुआ सा बिस्तर था, वो सिमटी हुई रजाई थी,
मैं टूटा हुआ सा मनका था, वो रोली और कपूर थी।
मै यूपी का छोरा, वो पंजाबी अनुभा कपूर थी।।
वो दिन थी, वो रात थी, सावन की पहली बरसात थी,
वो दरिया थी, वो नाव थी, सनक थी और सुरूर थी।
मै यूपी का छोरा, वो पंजाबी अनुभा कपूर थी।।
वो पूजा थी, आस्था थी, वो प्यार की पराकाष्ठा थी,
वो कोमल थी, कठोर थी, वो पास थी और दूर थी।
मै यूपी का छोरा, वो पंजाबी अनुभा कपूर थी।।
मैं अमावस का अंधेरा, वो पूनम का चांद थी,
मैं महादेव की सेना सा, वो अनिका का रूप थी।
मै यूपी का छोरा, वो पंजाबी अनुभा कपूर थी।
वो राज थी, वो साज थी, वो सुबह का आगाज़ थी,
में बुझता हुआ सा दीपक था, वो खिलता हुआ सा नूर थी।
मै यूपी का छोरा, वो पंजाबी अनुभा कपूर थी।
वो बड़ौदा की अंगड़ाई थी, जिसमें पूरी सुबह समाई थी,
मैं दिल्ली का गिरता पारा था, पर उसकी कसक जरूर थी।
मै यूपी का छोरा, वो पंजाबी अनुभा कपूर थी।
अमित बीके खरे
"कसक"
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