Monday, March 2, 2020

किसी के होने से, किसी का ना होना ही अच्छा है,

किसी के होने सेकिसी का ना होना ही अच्छा है,
झूठ की मुस्कुराहट सेचुपके में रोना ही अच्छा है।

तुम रहो खुश गैरों की महफ़िल सजाने में,
गुमनाम हैपर मेरा गम का एक कोना ही अच्छा है।।

उसने जला दिए मेरे खतजो लिखे थे चाहत की स्याही से,
चलो एक कर्ज तो उतराअब चैन से सोना ही अच्छा है।

तेरी वो गुस्ताखियां जो सर-आंखों पे रखी थीअब उतार दी मैंने,
बोझ ढोकर चलने सेयहीं पर रुक जाना ही अच्छा है।

तेरे जाने के बादतेरी मुहब्बत ने भी अलविदा कह दिया,
इस खाली दिल का अब लुट जाना ही अच्छा है।

तुमने तो कहा थाएक मुकम्मल जहां बनायेगे साथ मिलके,
पर चलो मुकम्मल तुम सहीमेरा अधूरा तराना ही अच्छा है।

वो शाम जो गुजरती थी मध्यम सी रोशनी में तेरे साथ,
उस सिसकती शाम का हौले हौले बुझ जाना ही अच्छा है।

वो चंद रातें जो गुजारी थी हमनेहाथों में हाथ लिए,
उन हाथों की लकीरों का अब मिट जाना ही अच्छा है।

जहां हम मिले थे पहली बारउस छोटे से घरोंदे मै,
उस जर्जर इमारत का अब बिखर जाना ही अच्छा है।

ना तुम बदल पाएना हम बदल पाएइस अनबुझे से रिश्ते में,
और क्या बदलेंइस रिश्ते का अब बदल जाना ही अच्छा है।

खुश रहे तुंजहां भी रहेमेरा क्या,
"कसक" का अब तो गुजर जाना ही अच्छा है।

अमित बृज किशोर खरे
"कसक"

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