एक दीप और जलातें हैं....
खुशियों का एक दीप,
सपनों का एक दीप !
एक दीप रंगों का,
एक दीप उमंगों का !
एक दीप और जलातें हैं......
खेत खलियानों में,
उमंगों की उड़ानों में !
झोपड़ी और मकानों में,
अनछुये अंधकारों में !
एक दीप और जलातें हैं......
रोशनी और विनोद का,
आस्था और आलोक का !
आशीषों की मधुर छांव का,
पावन सुन्दर गांव का !
एक दीप और जलातें हैं......
अन्नदाता और किसान का,
पालनहार भगवान का !
देवोमय मेहमान का,
आखिर में हर इंसान का !
एक दीप और जलातें हैं......
एक दीप और जलातें हैं......
अमित बी.के. खरे “कसक”
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