Monday, October 10, 2016

एक दीप और जलातें हैं....


एक दीप और जलातें हैं....

खुशियों का एक दीप,
सपनों का एक दीप !
एक दीप रंगों का,
एक दीप उमंगों का !

एक दीप और जलातें हैं......

खेत खलियानों में,
उमंगों की उड़ानों में !
झोपड़ी और मकानों में,
अनछुये अंधकारों में !

एक दीप और जलातें हैं......

रोशनी और विनोद का,
आस्था और आलोक का !
आशीषों की मधुर छांव का,
पावन सुन्दर गांव का !

एक दीप और जलातें हैं......

अन्नदाता और किसान का,
पालनहार भगवान का !
देवोमय मेहमान का,
आखिर में हर इंसान का !

एक दीप और जलातें हैं......
एक दीप और जलातें हैं......

अमित बी.के. खरे “कसक”


No comments: