Tuesday, May 3, 2016

मैं कितना गिर चूका हूँ,


मैं कितना गिर चूका हूँ,
और गिरके बिखर चूका हूँ !

मैं कितना गिर चूका हूँ 
मैं कितना गिर चूका हूँ

न हिम्मत, न ज़ज़्बा, न उठने का शलीखा,
मैं तो अब गुज़र चूका हूँ। ..

मैं कितना गिर चूका हूँ 
मैं कितना गिर चूका हूँ

अम्बर में काले बादल, और दिल की ज़मीं है बंजर,
मैं पूरा उजड़ चूका हूँ !

मैं कितना गिर चूका हूँ 
मैं कितना गिर चूका हूँ

अमित बृज किशोर खरे 
"कसक"

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