सुन्दर, मनमोहक, अति पावन है ये धरा !
देवों का घर है, और पुरखों का आसरा !!
मिट्टी में सोना, और पानी में चांदी !
हरे भरे खेत और खुशबू वो सौंधी !!
झिलमिल सी नदियां जो बहतीं हैँ झरझर !
खुशियों की खुशबु जो रहती है हर पल !!
ये फिर जी उठेंगें……….. हम फिर जी उठेंगें………….!!!!
सपनों को साकार किया, इन मजबूत इरादों नें !
कुछ करने का हुनर जो था, खुद से किये उन वादों में !!
एक रह हमने चुनी, और कारवां बनता गया !
बस रंग हमने भरे और आसमां बनता गया !!
वो फिर जी उठेंगे……….. हम फिर जी उठेंगें………….!!!!
जब सोना उगे खेत में, तो क्या रक्खा है रेत में !
हम क्यों एक कि बात करें, जब गिनती है अनेक में !!
धान, चना, बाजरा, मक्का, हम भी करें जो करते कक्का !
सबकी भूंख मिटायें हम, और करें मुनाफा अपना पक्का !!
खेत फिर खिल उठेंगें……….. हम फिर जी उठेंगें………….!!!!
एक नयी भोर होगी, खुशियों की डोर होगी !
बेटी होगी बाप का कन्धा खुशियां चहुँ-ओर होगीं !!
कदम मिलकर साथ चलेगी, मंजिल अपनी पाकर रहेगी !
न डिडेगी, न डरेगी, न होगी कमजोर, सपनों को साकार करेगी !!
बेटी होगी रौनक घर की, रौशन सारा घरबार करेगी !
आसमान में पंछी जैसा खुशियों का इजहार करेगी !!
वो फिर जी उठेंगी……….. हम फिर जी उठेंगें………….!!!!
बरसेंगे उज्यारे सावन !
रौशन होगा हर घर आँगन !!
स्वाभिमान के साथ जियेंगे !
शान से घर रौशन कर देंगें !!
वो फिर जी उठेंगे……….. हम फिर जी उठेंगें………….!!!!
वो फिर जी उठेंगे……….. हम फिर जी उठेंगें………….!!!!
अमित बृज किशोर खरे
"कसक"