Monday, May 30, 2016

ये फिर जी उठेंगें……….. हम फिर जी उठेंगें………….!!!!


सुन्दर, मनमोहक, अति पावन है ये धरा !
देवों का घर है, और पुरखों का आसरा !!

मिट्टी में सोना, और पानी में चांदी !
हरे भरे खेत और खुशबू वो सौंधी !!

झिलमिल सी नदियां जो बहतीं हैँ झरझर !
खुशियों की खुशबु जो रहती है हर पल !!

ये फिर जी उठेंगें……….. हम फिर जी उठेंगें………….!!!!

सपनों को साकार किया, इन मजबूत इरादों नें !
कुछ करने का हुनर जो था, खुद से किये उन वादों में !!

एक रह हमने चुनी, और कारवां बनता गया !
बस रंग हमने भरे और आसमां बनता गया !!

वो फिर जी उठेंगे……….. हम फिर जी उठेंगें………….!!!!

जब सोना उगे खेत में, तो क्या रक्खा है रेत में !
हम क्यों एक कि बात करें, जब गिनती है अनेक में !!

धान, चना, बाजरा, मक्का, हम भी करें जो करते कक्का !
सबकी भूंख मिटायें हम, और करें मुनाफा अपना पक्का !!

खेत फिर खिल उठेंगें……….. हम फिर जी उठेंगें………….!!!!

एक नयी भोर होगी, खुशियों की डोर होगी !
बेटी होगी बाप का कन्धा खुशियां चहुँ-ओर होगीं !!

कदम मिलकर साथ चलेगी, मंजिल अपनी पाकर रहेगी !
डिडेगी, डरेगी, होगी कमजोर, सपनों को साकार करेगी !!

बेटी होगी रौनक घर कीरौशन सारा घरबार करेगी !
आसमान में पंछी जैसा खुशियों का इजहार करेगी !!

वो फिर जी उठेंगी……….. हम फिर जी उठेंगें………….!!!!

बरसेंगे उज्यारे सावन !
रौशन होगा हर घर आँगन !!
स्वाभिमान के साथ जियेंगे !
शान से घर रौशन कर देंगें !!

वो फिर जी उठेंगे……….. हम फिर जी उठेंगें………….!!!!
वो फिर जी उठेंगे……….. हम फिर जी उठेंगें………….!!!!

 

अमित बृज किशोर खरे

"कसक"

Tuesday, May 3, 2016

मैं कितना गिर चूका हूँ,


मैं कितना गिर चूका हूँ,
और गिरके बिखर चूका हूँ !

मैं कितना गिर चूका हूँ 
मैं कितना गिर चूका हूँ

न हिम्मत, न ज़ज़्बा, न उठने का शलीखा,
मैं तो अब गुज़र चूका हूँ। ..

मैं कितना गिर चूका हूँ 
मैं कितना गिर चूका हूँ

अम्बर में काले बादल, और दिल की ज़मीं है बंजर,
मैं पूरा उजड़ चूका हूँ !

मैं कितना गिर चूका हूँ 
मैं कितना गिर चूका हूँ

अमित बृज किशोर खरे 
"कसक"