Friday, August 31, 2012

खुदा भी रत्ती भर जिंदगी में, अहशान देता है....!!!!


वो मुहब्बत भी मुझे, बे-पनाह देता है....
देता है जब दर्द, तो बे-परवाह देता है.....

मर्ज़ देकर मेरा हकीम मुझे,,,
हकीम के पास जाने की सलाह देता है....

वो नफरत भी करता है तो शादगी से,,,
हमारे जुनून को एक इल्जाम देता है....

कोई जाके कह दे मेरे हम-नवा से,,,,
वो जब भी देता है, नया फरमान देता है....

मुफ्लिशी में खुद की, फ़क़त आरज़ू नहीं,,,,
अब खुदा भी रत्ती भर जिंदगी में, अहशान देता है....

ये आदत है मेरी, या तफरीह का मलाल,,,,
जो भी हो 'कसक' अब मुस्कान देता है.......


अमित बृज किशोर खरे
"कसक"

Wednesday, August 29, 2012

अब वक़्त है "कसक" के चैन से सो जाऊ....!!!

 
यूँ पल-पल मरने से अच्छा है, एक बार मर जाऊ,,
आंशु बनके आँखों से, एक बार बिखर जाऊ...

अब इस मुकम्मिल जहाँ में, मेरे लिए कुछ न बचा,,,
सोचता हूँ अब सागर की गहराई में उतर जाऊ...

हर रास्ता जा रहा है, बस उसी की तरफ,,,
अब जाऊ भी तो कैसे और कहाँ जाऊ...??

उससे तो सुना दिया फरमान ताबीर-ये-ख्याब का,,,
अब ठहरूँ, या ख्याब की तरहा बिखर जाऊ...??

ये आखिरी कील थी मेरे मुहब्बत-ये-ताबूत में,,,
अब वक़्त है "कसक" के चैन से सो जाऊ...


अमित बृज किशोर खरे
"कसक"

Tuesday, August 28, 2012

एक कहानी ख़तम होने को है....!!!!



और एक कहानी ख़तम होने को है,
फिर से वो काली रात होने को है..

बड़ी कसमकस थी, बड़ी आरजू थी,
थे बोल उसके मेरी बान्शुरी थी..
यूँ हसने का हमको मिला ये सिला है,
अब हस्ते है खुद पे, न तुझसे गिला है..

तुमको पता है, और मुझको यकीं है,
के मेरा आफ़ताब अब खोने को है....

इस नींद की भी हमसे बड़ी बेरुखी है,
न जाने इन आँखों में ये कहाँ पे रुकी है..
इस नींद को तलाशने में, सारे आंशु गुज़र गए,,
और इन सूखी आँखों मै अब अँधेरे पसर गए...

लिखा भी नहीं जाता दर्द इससे आगे "कसक"
सायद ये कलम भी अब थक के रोने को है....


अमित बृज किशोर खरे
"कसक"