Monday, January 23, 2017

एक बस तू है !


एक बस तू है !
एक बस तू है !!

इन सवालों का हल, एक बस तू है,
मेरा हँसता सा कल, एक बस तू है !
जो बैठा है मेरी आँखों में,
सपनों के जैसा वो पल, एक बस तू है !!

एक बस तू है !
एक बस तू है !!

तू ही तो है जो होंठों से झरता है,
तू ही तो है जो जुबां से पिघलता है !
तू ही तो है जो खिलता है फूलों सा,
तू ही तो है जिससे दिल यूँ संभलता है !!

जो रहता है ख्वाबों में वो, एक बस तू है !

एक बस तू है,
एक बस तू है !!

यूँ खाली से लम्हों में चलते रहें पल दो पल,
तेरी बाँहों में हम उड़ते रहें बेख़बर !
अपना ही रब होगा, अपना ही सब होगा, अपना ही होगा जहाँ,
तुझसे यूँ मिलते ही, लगने लगा है कि खुशियों का होगा सफ़र !!

अरमानों का बनता महल, एक बस तू है !
एक बस तू है,
एक बस तू है !!



अमित ब्रज किशोर खरे
“कसक”