अब अगर आना, तो रुकने के वास्ते आना,,,
जाने के लिए मत आना...!!!
भीनी-भीनी सी खुशबू है तेरे अंजुमन में,,
अब अगर आना, तो बारिश में भिगोने के लिए आना,,,
आंशुओं की बूंदें लिए मत आना....!!!
कुछ चंद लम्हों और मुलाकातों की ये जिंदगी नहीं,,
अब अगर आना, तो घर को बनाने के लिए आना,,,
मेहमान बनके मत आना...!!!
हम यूँ ही हिज्र-ऐ-बेरुखी में अब न रुकेंगें,,
अब अगर आना, तो सागर के ठहराव सा आना,,,
नहीं के बहाव से मत आना...!!!
मंजिलों की उम्मीद तो हम कब की छोड़ चुके, बस करवा ही बाकि है,,
अब अगर आना, तो साथ चलने के लिए आना,,,
रास्ता दिखाने के लिए मत आना...!!!
अब 'कसक' ने कमजोर धागों को ढीला छोड़ रखा है,
अब अगर आना, तो रिश्तो को बांधने के लिए आना,,,
उम्मीद तोड़ने के लिए मत आना...!!!
अमित बृज किशोर खरे
'कसक'