कुछ दिनों से कुछ दूर सी थी वो..
आज पता नहीं क्यों,,??
उसी पास बिठाने का मन किया....
बैसे तो वो मेरे पास ही थी,
पास शायद हमने ही,
चांदनी की चाहत में,
दिये की रोशनी को बुझा दिया था...
आज इस काली रात ने,
उस हमसफ़र की याद दिला दी...
वो जो हर वक़्त मेरे साथ चलती थी,
मेरी ख़ुशी में खुश थी,
तो मेरे आंशुओं के साथ पिघलती थी...
जो करती थी मुझसे बातें,
बिना किसी जुबान के,,
और जो थम लेती थी मुझे,
बिना किसी अहसान के....
जिसने हर वक़्त दिया मेरा साथ,
मेरी हर एक खुसी में,
मेरे हर एक गम में.....
वो प्यार की 'कसक' में थी,
और थी दर्द के मरहम में.....
वो एक, और बस एक साथी मेरी....
"मेरी कलम"
My Pen........